चंचल मन को साधना, सचमुच गुरुतर कार्य |
गुरु तर-कीबें दें बता, करूँ निवेदन आर्य |
गुरु तर-कीबें दें बता, करूँ निवेदन आर्य |
करूँ निवेदन आर्य, उतरता जाऊँ गहरे |
जहाँ प्रबल संघर्ष, नहीं नियमों के पहरे |
बाहर का उन्माद, बने अन्तर की हलचल |
दे लहरों को मात, तलहटी ज्यादा चंचल ||
तलहटी ही वाकई खराब है।
ReplyDeleteबहुत प्रभावशाली.
ReplyDeleteरामराम.
दे लहरों को मात, तलहटी ज्यादा चंचल ||
ReplyDeleteबहुत सही रविकर जी ।
तलहटी सब जमा कर लेती है !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति है रविकर जी .बाहर का उन्माद बने अंतर की हलचल .
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