कमल खिलेंगे बहुत पर, राहु-केतु हैं बंकु |
चौदह के चौपाल की, है उम्मीद त्रिशंकु | है उम्मीद त्रिशंकु, भानुमति खोल पिटारा | करे रोज इफ्तार, धर्म-निरपेक्षी नारा | ले "मकार" को साध, कुशासन फिर से देंगे | कीचड़ तो तैयार, मगर क्या कमल खिलेंगे--
*Minority
*Muthuvel-Karunanidhi
*Mulaayam
*Maayaa
*Mamta
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महेन्द्र श्रीवास्तव
मजा लीजिये पोस्ट का, परिकल्पना बिसार |
शुद्ध मुबारकवाद लें, दो सौ की सौ बार | दो सौ की सौ बार, मुलायम माया ममता | कुल मकार मक्कार, नहीं मन मोदी रमता |
दिग्गी दादा चंट, इन्हें ही टंच कीजिये |
होवें पन्त-प्रधान, और फिर मजा लीजिये || |
फिलहाल तो सिर्फ कीचड ही कीचड है, चहु ओर !
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट आज के (३० जुलाई, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - एक बाज़ार लगा देखा मैंने पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावशाली.
ReplyDeleteरामराम.
सटीक लिखा है !!
ReplyDeleteचकाचक।
ReplyDeleteपढ़कर बहुत मजा आया |
ReplyDeleteपर यदि कीचड तैयार हैं तो कमल कों खिलना ही होंगा |
एक शाम संगम पर {नीति कथा -डॉ अजय }
शानदार और रोचक प्रस्तुति। आभार।।
ReplyDeleteनये लेख : ब्लॉग से कमाई का एक बढ़िया साधन : AdsOpedia
ग्राहम बेल की आवाज़ और कुदरत के कानून से इंसाफ।
वाह! बहुत ख़ूब
ReplyDeleteकीचड़ में कमल खिलाने की जिम्मेदारी भी निभाएं मान्यवर। बहुत बढ़िया।
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