अखरे नखरे खुरखुरे, जब संवेदनहीन |
जीवन से कुल हास्य रस, जग ले जाए छीन |
जीवन से कुल हास्य रस, जग ले जाए छीन |
जग ले जाए छीन, क्षीण जीवन की आशा |
बिना हास्य रोमांस, गले झट मनुज-बताशा |
खे तनाव बिन नाव, किनारा निश्चय लख रे |
लाँघे विषम बहाव, ज्वार-भांटा नहिं अखरे ||
बढ़िया।
ReplyDeleteबढिया, क्या बात
ReplyDeleteहंसी खुशी ही जीवन है । बढिया प्रस्तुति ।
ReplyDeleteखे तनाव बिन नाव, किनारा निश्चय लख रे |
ReplyDeleteलाँघे विषम बहाव, ज्वार-भांटा नहिं अखरे ||
sahi kaha hai bahut sundar ...
खे तनाव बिन नाव, किनारा निश्चय लख रे |
ReplyDeleteलाँघे विषम बहाव, ज्वार-भांटा नहिं अखरे ||
तनावरहित होकर किसी भी समस्या को सुलझाया जा सकता है
बहुत खूब , सादर !
क्या बात क्या बात है रविकर भाई की।
ReplyDeleteउम्दा .
ReplyDeleteआपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - हंसी के फव्वारे पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
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