23 July, 2013
दंगे से नंगे हुवे, आई एम् बके शकील -
सकते में हैं आमजन, सुनकर नई
दलील
दंगे से नंगे हुवे
,
आई एम् बके शकील
आई एम् बके शकील, कील आखिरी लगाईं
गया गो-धरा भूल, भूल जाता अधमाई
दंगों का इतिहास, कहीं पूरा जो बकते
लगा विकट आरॊप, भला फिर कैसे सकते
3 comments:
दिगम्बर नासवा
24 July 2013 at 01:15
शर्म इनको मगर नई आती ...
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ताऊ रामपुरिया
24 July 2013 at 03:21
शर्म तो बेच खाई है, बहुत ही सटीक रचना.
रामराम.
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सुशील कुमार जोशी
24 July 2013 at 04:53
वाह !
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शर्म इनको मगर नई आती ...
ReplyDeleteशर्म तो बेच खाई है, बहुत ही सटीक रचना.
ReplyDeleteरामराम.
वाह !
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