यह सोचने का विषय है कि वस्त्र शरीर को ढाँकने के लिये पहने जाते हैं या उत्तेजक रूप में प्रदर्शित करने के लिये के लिए .वस्त्र, सुरुचिपूर्ण और शालीनतापूर्वक शरीर को ढँके ,यह तो उचित ही है. अधिकतर अब सिनेमा और सीरियल्स में देख कर ड्रेसेज समाज में चलने लगती हैं .सिनेमा में नारी शरीर के प्रदर्शन कर जनता को आकृष्ट करने के लिए बदन-दिखाऊ कपड़े पहनाए जाते हैं अपना बाज़ार बढ़ाने के लिए. उनके सारे हथकंडे हैं एक ही उद्देश्य है ,व्यापार बढ़ाना पैसा कमाना .ये सब व्यापार बढ़ाने के लिए .और फिर वही ढंग चल निलकलता है .वही कपड़े फैशन बन जाते हैं .गरिमापूर्ण व्यक्तित्व की जगह बिकाऊ बाज़ारू माल की तरह. अपने को उद्घाटित करती हैं
सुन्दर !
ReplyDeleteसही कहा है.
ReplyDeleteरामराम
बढ़िया।
ReplyDeletewell said .....
ReplyDeleteHmmmm...
ReplyDeleteबोल चुका रविकर अब कोई क्या बोले
ReplyDelete:)
यह सोचने का विषय है कि वस्त्र शरीर को ढाँकने के लिये पहने जाते हैं या उत्तेजक रूप में प्रदर्शित करने के लिये के लिए .वस्त्र, सुरुचिपूर्ण और शालीनतापूर्वक शरीर को ढँके ,यह तो उचित ही है.
ReplyDeleteअधिकतर अब सिनेमा और सीरियल्स में देख कर ड्रेसेज समाज में चलने लगती हैं .सिनेमा में नारी शरीर के प्रदर्शन कर जनता को आकृष्ट करने के लिए बदन-दिखाऊ कपड़े पहनाए जाते हैं अपना बाज़ार बढ़ाने के लिए. उनके सारे हथकंडे हैं एक ही उद्देश्य है ,व्यापार बढ़ाना पैसा कमाना .ये सब व्यापार बढ़ाने के लिए .और फिर वही ढंग चल निलकलता है .वही कपड़े फैशन बन जाते हैं .गरिमापूर्ण व्यक्तित्व की जगह बिकाऊ बाज़ारू माल की तरह. अपने को उद्घाटित करती हैं
तालीबानी ना हो पर शालीनता हो ।
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