हुआ रिएक्शन दवा का, ले बिन देखे घोट |
आइ सी यू में जिंदगी, हवा हो रहे नोट |
हवा हो रहे नोट, पल्स पर नजर गढ़ाए |
गायब फ़ाइल मोट, फूड जन-गण बहकाए |
रविकर तिकड़ी देख, दे रहा देश बददुआ |
छाया नशा चुनाव, लिया पी जैसे महुआ |
वंशीधर का मोहना, राधा-मुद्रा मस्त ।
नाचे नौ मन तेल बिन, किन्तु नागरिक त्रस्त ।
किन्तु नागरिक त्रस्त, मगन मन मोहन चुप्पा ।
पाई रहा बटोर, धकेले लेकिन कुप्पा ।
बीते बाइस साल, हुई मुद्रा विध्वंशी ।
चोरों की बारात, बजाये रविकर वंशी ॥
भाई रविकर जी!कृष्ण-जन्माष्टमी की कोटि कोटि वधाइयां !!
ReplyDeleteझोला छाप डॉक्टरों पर और मुद्रा-ह्रास पर दोनों व्यंग्य ही बेजोड हैं |
nice baba!
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