आह वजीरे-आजमी, आहा आजम खान |
रहे धरे के धरे कुल, मन्सूबे आहवान | मन्सूबे आह्वान, रही रौनक सूबे में | सोच नफा-नुक्सान, हुवे खुश दोनों खेमे | राम-लला फिलहाल, विराजे सरयू तीरे | लगा पुराना टेंट, भरें वह आह, वजीरे || |
हँसे हिन्दुकुश हटकि, चुकाए हिन्दु उधारा-
(1)
धारा चौवालिस धरा, अवध पधारा भक्त |
सरयू धारा धरा सह, आज हुई ना रक्त |
आज हुई ना रक्त, दुबारा सख्त मुलायम |
परिक्रमा पर रोक, व्यवस्था रहती कायम |
चल चौरासी कोस, महज नर-नारी नारा |
हँसे हिन्दुकुश हटकि, चुकाए हिन्दु उधारा ||
(2)
ढाई फिर से जुल्म है, यह जालिम सरकार ।
प्रतिबंधित कर परिक्रमा, छीन मूल अधिकार । छीन मूल अधिकार, कोस चौरासी घेरा । रहे परस्पर कोस, सीट अस्सी का फेरा ।
परिषद् करे प्रचार, दोष इसमें क्या भाई ।
वोट बैंक पर नजर, सभी ने अगर गढ़ाई ।
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किसी तरह सत्तासीन होने के लिए क्या-क्या कर रहे हैं, शर्म आती है।
ReplyDeleteकृष्ण-जन्माष्टमी की अग्रिम वधाई ! मित्र आज गद्य में विचार अभिव्यक्ति को रोक नहीं पाया | दुराचार का ऐसा भीषण स्वरूप जोअध्यातं में पैठ गया है,एक ही सन्त (तथाकथित) के आचरण में पाया गया है , मन को हिला कर रख गया है |
ReplyDeleteबहुत अच्छी कुण्डलियाँ |