17 November, 2013

सचिन घोंसला व्यग्र, अंजली अर्जुन सारा-


Photo 1 of 13
स्वार्थ हमारा ले रहा, पिच दर पिच आनंद |
प्रतिपल के उन्माद में, तथ्य भूलते चन्द |

तथ्य भूलते चन्द, महामानव है बन्दा |
रेफलेक्सेज नहिं मंद, गगन छू चुका परिंदा |

सचिन घोंसला व्यग्र, अंजली अर्जुन सारा |
बच्चों का अधिकार, छीनता स्वार्थ हमारा ||


चौबिस वर्षों तक जमा, रहा जमाना ताक-

  



बहा नाक से खून पर, जमा पाक में धाक |
चौबिस वर्षों तक जमा, रहा जमाना ताक |

रहा जमाना ताक, टेस्ट दो सौ कर पूरे |
कर दे ऊँची नाक, बहा ना अश्रु जमूरे |

चला मदारी श्रेष्ठ, दिखाके करतब नाना |
ले लेता संन्यास, उम्र का करे बहाना |। 

6 comments:

  1. तथ्य भूलते चन्द, महामानव है बन्दा |
    रेफलेक्सेज नहिं मंद, गगन छू चुका परिंदा |
    रजस और तमस संसिक्त लोग हर चीज़ में दाग ही देखते हैं चाहे वह सचिन भाई का किरदार हो या जगद्गुरु ऐसे पत्रकार हमारे बीच प्रगटित हुए हैं जिन्हें सिर्फ दाग ही दिखता है एक चैनलिया जगद्गुरु के बारे में कह रहा था अपने न्यूज़ चैनल पर -विवादों से उनका पुराना नाता था ,मर गए वो अब। ऐसे ही राजनीति में लोग साम्प्रदायिकता की बात करते हैं सोनिया (सोइया )हो या कोई और इन्हें यह नहीं पता भारत में सम्प्रदाय थे भारत कभी भी साम्प्रादायिक नहीं रहा ये सिलसिला तो मुसलमानों के आने के बाद शुरू हुआ। यहाँ तो जितने सनातनी थे उतने ही देव थे। कोई शैव और कोई वैष्णव सम्प्रदाय को भजता था।

    सम्प्रदाय का अर्थ है वह जो समाज को कुछ देता है सोइया जी को भी कोई समझा दे तो भारत के बारे में उनके ज्ञान चक्षु खुलें जो साम्प्रदायिकता की बात करतीं हैं। कोई है इन्हें बतलाये सम्प्रदाय का मर्म और अर्थ। हिन्दू बोले तो भारत धर्मी समाज कैसे साम्प्रादायिक हो गया भले कांग्रेसियों। भली आदमिन सोइया जी।

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर सर जी , महामानव ही है बंदा

    ReplyDelete
  3. समझ नहीं आया--कि ये प्रशंसास्तुति है---?
    क्षमा करें

    ReplyDelete
  4. आदरणीय सर , आखिरी लाइन , बच्चों का अधिकार छीनता स्वार्थ हमारा , बहुत दमदार , धन्यवाद
    " जै श्री हरि: "

    ReplyDelete
  5. रत्‍न तो मिला, पर न जाने क्‍या-क्‍या सोचकर दिया गया।

    ReplyDelete
  6. खूबसूरत कथ्य और शब्द...

    ReplyDelete