29 December, 2013

हाजिर हूँ हुजूर -रविकर

एक-दो दिन में नियमित हो जाऊँगा -
(१)
मैय्यत में भी न मिलें, अब तो कंधे चार |
खुद से खुद को ढो रही, लागे लाश कहार ||
(२)
नया वर्ष आसन्न है, कटे आप के क्लेश |
जैजैवन्ती है शुरू, जाय भाड़ में देश ||
(३)
सा'रे गा'मा पा'दते, धा'नी हिलती देख |
रे'गा सा'मा'धा'न सब, ना पा'रे संरेख ||
(४)
आप भला तो जग भला, देख आप आलाप |
सब्ज बाग़ दिखला रहे, चालू क्रिया-कलाप ||

9 comments:

  1. स्वागत है कमी खल रही थी :)
    बहुत सुंदर जिंदगी कुछ ऐसे ही लाद रही है अब :)

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  2. गहरे हैं सभी दोहे ... जीवन का सार लिए ...

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  3. वाकई क्रियाकलाप छोटे से जीवन में बहुत सारे हो गए हैं।

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  4. काफी दिनों बाद लौटकर पाया,बहुत कुछ मिस किया।

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  5. मित्र!आपको सपरिवार नव वर्ष की वधाई !
    अथ, य्थार्थ्से परिपूर्ण दोहे अच्छे हैं |

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  6. बहुत सुन्दर.
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
    मेरे ब्लॉग पर आपके आने का हार्दिक आभार.

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  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति , आदरणीय बहुत कमीं ख़ल रही थी , आगमन की सूचना से दिल बाग बाग हो गया , धन्यवाद
    ॥ जय श्री हरि: ॥

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