एक-दो दिन में नियमित हो जाऊँगा -
(१)
मैय्यत में भी न मिलें, अब तो कंधे चार |
खुद से खुद को ढो रही, लागे लाश कहार ||
(२)
नया वर्ष आसन्न है, कटे आप के क्लेश |
जैजैवन्ती है शुरू, जाय भाड़ में देश ||
(३)
सा'रे गा'मा पा'दते, धा'नी हिलती देख |
रे'गा सा'मा'धा'न सब, ना पा'रे संरेख ||
(४)
आप भला तो जग भला, देख आप आलाप |
सब्ज बाग़ दिखला रहे, चालू क्रिया-कलाप ||
स्वागत है कमी खल रही थी :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर जिंदगी कुछ ऐसे ही लाद रही है अब :)
गहरे हैं सभी दोहे ... जीवन का सार लिए ...
ReplyDeleteवाह! क्या बात!
ReplyDeleteजिसमें कि ख़ुदा रहता है
वाकई क्रियाकलाप छोटे से जीवन में बहुत सारे हो गए हैं।
ReplyDeleteकाफी दिनों बाद लौटकर पाया,बहुत कुछ मिस किया।
ReplyDeletenc post sr :)
ReplyDeleteमित्र!आपको सपरिवार नव वर्ष की वधाई !
ReplyDeleteअथ, य्थार्थ्से परिपूर्ण दोहे अच्छे हैं |
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आपके आने का हार्दिक आभार.
बहुत सुंदर प्रस्तुति , आदरणीय बहुत कमीं ख़ल रही थी , आगमन की सूचना से दिल बाग बाग हो गया , धन्यवाद
ReplyDelete॥ जय श्री हरि: ॥