पाला पड़ता इस कदर, पौधा दिया गलाय |
उनके पाले जो पड़े, *पालागन कर जाय |
*पैर लगना, नमस्कार करना
*पालागन कर जाय, अन्यथा बच ना पाये |
जाय चांदनी जीत, धूप को मौसम खाये |
रविकर करो सफ़ेद, कलेजा अपना काला |
मकु होवे नरमेध, सोच गर कुत्सित पाला ||
अब्दुल्ला दीवानगी, देख बानगी एक |
करे खिलाफत किन्तु फिर, देता माथा टेक |
देता माथा टेक, नेक बन्दा है वैसे |
किन्तु तरुण घबराय, लिफ्ट की लिप्सा जैसे |
व्यर्थ रेप कानून, कहे इत खुल्लम खुल्ला |
उसका राज्य विशेष, जानता उत अब्दुल्ला ||
वाह बहुत खूब !
ReplyDeleteक्या बात।
ReplyDeleteअब्दुल्ला दीवानगी, देख बानगी एक
ReplyDeleteक्या खूब यमक है !
.सराहनीय बात कही है आपने औरत :आदमी की गुलाम मात्र साथ ही ये भी देखें नाबालिग :उम्र की जगह अपराध की समझ व् परिपक्वता देखी जाये .
ReplyDeleteवाह क्या बात! बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteइसी मोड़ से गुज़रा है फिर कोई नौजवाँ और कुछ नहीं
Bahut badhiya Ravikar ji.
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