आड़े अनुभवहीनता, पब्लिक थानेदार ।
भीड़ अड़ी भगदड़ बड़ी, भाड़े जन-दरबार ।
भाड़े जन-दरबार, नहीं व्यवहारिक कोशिश ।
चूके फिर इस बार, कौन कर बैठा साजिश ।
दूर हटे अरविन्द, आज छवि आप बिगाड़े ।
धीरे धीरे सीख, समय आयेगा आड़े ।
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नीति नियम नीयत सही, सही कर्म ईमान |
सही जाय ना व्यवस्था, सी एम् जी हलकान |
सी एम् जी हलकान, बिना अनुभव के गड़बड़ |
बार बार व्यवधान, अगर मच जाती भगदड़ |
आशंकित सरकार, चलो खामी तो मानी|
चेतो अगली बार, नहीं दुहरा नादानी ||
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क्या बात है वाह !
ReplyDeleteकाफी उम्दा प्रस्तुति.....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (12-01-2014) को "वो 18 किमी का सफर...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1490" पर भी रहेगी...!!!
- मिश्रा राहुल
आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन लाल बहादुर शास्त्री जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत अच्छी सलाह दिया रविकर जी आपने !
ReplyDeleteनई पोस्ट आम आदमी !
नई पोस्ट लघु कथा
अच्छा कहा आपने।
ReplyDeletebadiya
ReplyDeleteबहुत खूब सरजी !
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