10 January, 2014

भीड़ अड़ी भगदड़ बड़ी, भाड़े जन-दरबार-

आड़े अनुभवहीनता, पब्लिक थानेदार । 
भीड़ अड़ी भगदड़ बड़ी, भाड़े जन-दरबार । 

 भाड़े जन-दरबार, नहीं व्यवहारिक कोशिश । 
चूके फिर इस बार, कौन कर बैठा साजिश । 

दूर हटे अरविन्द, आज छवि आप बिगाड़े । 
धीरे धीरे सीख, समय आयेगा आड़े । 

नीति नियम नीयत सही, सही कर्म ईमान |
सही जाय ना व्यवस्था, सी एम् जी हलकान |

सी एम् जी हलकान, बिना अनुभव के गड़बड़ |
बार बार व्यवधान,  अगर मच जाती भगदड़ |

आशंकित सरकार, चलो खामी तो मानी|
चेतो अगली बार, नहीं दुहरा नादानी || 
  

7 comments:

  1. काफी उम्दा प्रस्तुति.....
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (12-01-2014) को "वो 18 किमी का सफर...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1490" पर भी रहेगी...!!!
    - मिश्रा राहुल

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  2. आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन लाल बहादुर शास्त्री जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. बहुत अच्छी सलाह दिया रविकर जी आपने !
    नई पोस्ट आम आदमी !
    नई पोस्ट लघु कथा

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  4. बहुत खूब सरजी !

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