दीमक दर दीवार चाटती
सत्ता का दीवान चाटती ।
बड़ी दिलावर चुपके खुलके
तंतु-तंत्र ईमान चाटती ।।-
तरह तरह की दिल्ली दीमक
सूखी रूखी गीली दीमक ।
दूर-दूर से चुनकर आती
खोका पेटी लीली दीमक ।। -
ऊंचे-नीचे सदन विराजे ।
नौकर सैनिक स्वजन विराजे ।
निज काया से बढ़कर खाए
पांच साल तक तूती बाजे ।।
-
कागज़ पर जो सजे मसौदे ।
सौदे करके बने घरौंदे ।
सैनिक दीमक रंग रूट वे
खुद अपने बूटों से रौंदें ।।
- उर्वर क्षमता से भर-पूर ।
रहा कलूटा रानी घूर-
इक संसर्गी सत्र बीतता-
न्यू-कालोनी बसी सुदूर ।। रानी
रानी होती हाइ-कमान ।
सबसे बढ़ के उसका मान ।
कालोनी आबाद कराये-
बढे-चढ़े नित उसकी शान ।।
सुत-दीमक का सपना एक ।
घर की लक्कड़ अपना केक ।
ललचाई नजरों से ताके -
रानी चले लकुटिया टेक ।
कालोनी की अपनी रानी।
अपने मन की रेल बनानी ।
मृत्यु दंड देती है झट-पट -
करे अगर कोई मनमानी ।।
छोटी मोटी खोटी दीमक ।
बड़ी-अड़ी नखरौटी दीमक ।
चारो खम्भों में लग करके-
चाटे बोटा-बोटी दीमक ।
छोटी मोटी खोटी दीमक ।
बड़ी-अड़ी नखरौटी दीमक ।
चारो खम्भों में लग करके-
चाटे बोटा-बोटी दीमक ।
वा जी बोटा-बोटी गजब है दीमकीय।
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत करार चोट रविकर जी !
ReplyDeleteनई पोस्ट मेरी प्रियतमा आ !
नई पोस्ट मौसम (शीत काल )