आक्रमणकारी सोच का, यह बयान प्रतिबिम्ब |
किया नपुंसक ने खड़ा, डइनासोरी *डिम्ब |
*डिम्ब= दंगा / अंडा
डइनासोरी डिम्ब, पकाया पूरा खाया |
हारा तभी हिडिम्ब, भीम ने व्याह रचाया |
कितने "पुर" बरबाद, किन्तु सन दो का हौआ |
रहे हमेशा याद , रहें कौवाते कौआ ||
कौवाते कौओं की चोंच छिलनेवाली है बुरी तरह।
ReplyDeleteपुंसकत्व के प्रश्न पर, पुंश्चलीय उदगार।
ReplyDeleteसत्य मानता सर्वथा, माँ के कहे विचार ।
माँ के कहे विचार, रात में ट्रेन जलाई ।
फ़ैल गई वह आग, लड़े फिर भाई भाई ।
गुण-ग्राहक की गोद , नहीं फिर रही अहिंसक ।
गया तड़पता छोड़, कहे इसलिए नपुंसक ॥
वाह जनाब वाह .. क्या खूब कहा है , बहुत ही सामयिक एवं सटीक प्रतिक्रियात्मक रचना
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