कौन कृषक का मित्र कहाये ।
कौन भूमि भुरभुरी बनाये ।
अगर बदन दो में बँट जाता ।
क्या दोनों नव-जीवन पाता॥
नया केंचुवा मद में माता ।
जोड़ रहा साँपों से नाता ।
धीरे धीरे तन मन बाढ़ा ।
झूठ-मूठ अपना फन काढ़ा ।।
इक दिन पकड़ लिया मछुवारा।
नहीं कर सका कुछ बेचारा ।
बेचारा चारा कहलाया ।
कांटे में जब गया फँसाया ॥
वह वंशी पानी में डाले।
बड़ी देर तक देखा-भाले।
वंशी में फिर होती हलचल ।
मिला सब्र का मीठा जल-फल ॥
मछली छली गई बेचारी ।
मूल केंचवे को दुःख भारी ।
मूल केंचुवा अश्रु चुवाये ।
नया केंचुवा प्राण गंवाए ॥
मित्र !आप को धन तेरस और दीवाली के अन्य पञ्च-पर्व की वधाई ! सुन्दर रचना !!
ReplyDeleteबेहद की सशक्त रचना। बेहद की सशक्त रचना। किस्सा गो शैली में कही गई बेहद प्रभावशाली रचना रविकर भाई की।
ReplyDeleteजिधर भी जाए बेमिसाल जाए ,
हर तरफ से कामयाब आये ,
इसिलए रविकर कहलाये।
बहुत सुंदर और सार्थक... दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनायें !
ReplyDeleteअनुपम प्रस्तुति......समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ......
ReplyDeleteनयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं
सुंदर बाल कविता। दीपपर्व पर अनेक शुभ कामनाएं।
ReplyDeleteसुन्दर भाव शब्दार्थ लिए कथात्मक रचना
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