21 October, 2014

मछली छली गई बेचारी -बाल-कथा



कौन कृषक का मित्र कहाये ।
कौन भूमि भुरभुरी बनाये ।
अगर बदन दो में बँट जाता  । 
क्या दोनों नव-जीवन पाता॥ 

नया केंचुवा मद में माता । 
जोड़ रहा साँपों से नाता । 
धीरे धीरे तन मन बाढ़ा । 
झूठ-मूठ अपना फन काढ़ा ।। 

इक दिन पकड़ लिया मछुवारा। 
नहीं कर सका कुछ बेचारा । 
बेचारा चारा कहलाया  । 
कांटे में जब गया फँसाया ॥ 

वह वंशी पानी में डाले। 
बड़ी देर तक देखा-भाले। 
वंशी में फिर होती हलचल । 
मिला सब्र का मीठा जल-फल ॥ 

मछली छली गई बेचारी । 
मूल केंचवे को दुःख भारी । 
मूल केंचुवा अश्रु चुवाये ।
नया केंचुवा प्राण गंवाए ॥ 

7 comments:

  1. मित्र !आप को धन तेरस और दीवाली के अन्य पञ्च-पर्व की वधाई ! सुन्दर रचना !!

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  2. बेहद की सशक्त रचना। बेहद की सशक्त रचना। किस्सा गो शैली में कही गई बेहद प्रभावशाली रचना रविकर भाई की।

    जिधर भी जाए बेमिसाल जाए ,

    हर तरफ से कामयाब आये ,

    इसिलए रविकर कहलाये।

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  3. बहुत सुंदर और सार्थक... दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ...

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  4. दीपावली की शुभकामनायें !

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  5. अनुपम प्रस्तुति......समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ......
    नयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं

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  6. सुंदर बाल कविता। दीपपर्व पर अनेक शुभ कामनाएं।

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  7. सुन्दर भाव शब्दार्थ लिए कथात्मक रचना

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