ता ता थैया ता ता थैया |
मैया लेती रही बलैया |
भैया ज्यों कछुवा छुवा, बहना दी चिल्लाय |
जो तितली थी तली में, वो ऊपर उड़ जाए |
बड़ी जोर झल्लाया भैया |
ता ता थैया ता ता थैया ||
खले साँप सीढ़ी चढ़े, कैरम में रम जाय ।
लूडो की गोटी बढे, जहाँ पलक झपकाय ।
समझे खुद को बड़ा खिलैया ।
ता ता थैया ता ता थैया ।।
गौरैया का घोसला, अंडे उसमे चार ।
भैया क्यों माने भला, लेता उन्हें उतार ।
चीं-चीं कर खीजे गौरैया ।
ता ता थैया ता ता थैया |।
गैया का बछड़ा भला, बहना करे दुलार ।
बछड़े को वह रोटियां , रोज खिलाये चार ।
बड़ी वत्सला काली गैया ॥
ता ता थैया ता ता थैया |।
बहन रंगोली से सुबह, सजा रही थी द्वार ।
भैया अपनी गेंद को, रहा वहीँ पर मार ।
उसके कान उमेठे मैया ।
ता ता थैया ता ता थैया ।।
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 12/10/2014 को "अनुवादित मन” चर्चा मंच:1764 पर.
वाह !
ReplyDeleteसभी मित्र परिवारों को आज संकष्टी पर्व की वधाई ! सुन्दर प्रस्तुतीक्र्ण बालसुलभ !
ReplyDeleteसजीव कविता !
ReplyDeleteबहन रंगोली से सुबह, सजा रही थी द्वार ।
ReplyDeleteभैया अपनी गेंद को, रहा वहीँ पर मार ।
उसके कान उमेठे मैया ।
ता ता थैया ता ता थैया ।।
अति सुंदर. बधाई
हाहाहा
ReplyDeleteमनभावना ! :)
मेरे ब्लॉग पर आप आमंत्रित हैं :)
Bahut hi sunder kavita ....:)
ReplyDeleteसुंदर और सार्थक बाल रचना... बधाई आपको.
ReplyDeleteआप तो बाल कवितायें भी लाजवाब कह रहें हैं आज कल ...
ReplyDeleteमज़ा आया दिनेश जी ...