पहले तो आती थी आया ।
कितना बोझिल समय बिताया ।।
रहता हूँ मैं आज अकेला |
लैप-टॉप पे खेलूं खेला |।
सब-वे-सफरर फ्रूट कटर है |
हिल क्लाइम्बिंग पे जिगर निडर है |
पिज्जा बर्गर हरदम खाऊँ |
धक्का-मुक्की सह न पाऊँ |
मित्र खेलते रोज कबड्डी |
किन्तु चटकती मेरी हड्डी ॥
कहते मित्र किताबी-कीड़ा |
ताने मारें देते पीड़ा |
चाहूँ मैं भी बाहर जाना ।
पापा करते किन्तु बहाना ।
मम्मी पापा जब भी आते |
गिफ्ट थमाते मन बहलाते ॥ |
मन मसोस कर मैं रह जाता |
तमसो ज्योतिर्गमय चिढ़ाता ||
तमसो ज्योतिर्गमय चिढ़ाता ||
वाह बहुत खूब बालमन की रचना
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
बहुत सुंदर वाह !
ReplyDeleteमन मसोस कर मैं रह जाता |
ReplyDeleteतमसो ज्योतिर्गमय चिढ़ाता ||
वाह।
व्यंग्य विनोद और बच्चों का अकेलापन सभी मुखरित हैं इस अर्थ गर्भित रचना में .
ReplyDeleteसुंदर एवं संदेशप्रद बाल कविता ... आभार।
ReplyDeleteबाल मन में हो रहे हलचल को आपने बहुत दुन्दर शब्दरूप दिया !
ReplyDeleteखुदा है कहाँ ?
कार्ला की गुफाएं और अशोक स्तम्भ
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteआज के अधिकतर बच्चों की दास्ताँ लिख दी ...
ReplyDeleteअच्छा व्यंग ....
यही हो रहा है बच्चों के साथ - और लोग अपने-अपने में मगन हैं ,आपने सच कह दिया !
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