23 November, 2014

आई गई आई नई आई-गई खुद झेल ले - हरिगीतिका छन्द


इस बार के आयोजन के लिए जिस छन्द का चयन किया गया है, वह है – 

 हरिगीतिका छन्द


(१)
माँ माँख के परिवार यूँ तू छोड़ जाती किसलिए । 

माँ माँद में मकु माँसशी के बाल मन कैसे जिये । 

माँता रहे दिन रात बापू भाँग-मदिरा ही पिए । 

मैं माँड़ माँठी खा रहा महिना हुआ माँखन छुए। 
माँखना = क्रुद्ध होना 
माँसशी = राक्षस
(२)
बाहर रखी दो पादुका अंदर विराजा वीर है । 

है हाँसिए पे जिन्दगी माँ की मगर तस्वीर है । 

हैं पोथियाँ ही मित्र असली, लेखनी खड़िया चला । 

क्यों है उदासी आँख प्यासी, पास तेरे है कला ॥ 


(3)
आई गई आई नई आई-गई खुद झेल ले । 

खाना मिले या ना मिले, पर रोज पापड़ बेल ले । 

रेखा खिंची आँखे मिची अब काट के जंजाल तू ॥ 

जूते बड़े बाहर पड़े पैरों को उनमे डाल तू । 

आई=माँ  आई-गई = विपत्ति 

7 comments:

  1. जन भाषा में जान देती सशक्त रचना

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  2. सुन्दर प्रस्तुति..

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  3. गहरा सन्देश लिए हैं आपके छंद .... बहुत लाजवाब ...

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  4. सभी के लिए और सभी प्रकार की सरकारी नौकरी की जानकारी अब Zid News Blog पर उपलब्ध है।

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