आओ चलो शाखा चलें, खेलें ध्वजा भगवा तले ।
प्रात: चलें संध्या चलें, चलते चलें चलते चलें॥
विजया विजयनी शक्ति दे, कल्याणकारी कार्य कर ।
भारत जगत-जननी सरिस, इस शक्ति में औदार्य भर ।
माँ शील दे सद्ज्ञान दे, विज्ञान अग्रेसर बने ।
जन वीरव्रतधारी बने, गण धीर धर सागर बने ।
गंगा बहे गीता गहे सर्वत्र गो माता पलें ।
आओ चलो शाखा चलें, खेलें ध्वजा भगवा तले ।
प्रात: चलें संध्या चलें, चलते चलें चलते चलें॥
हो ध्येय में विचलन नहीं । समुदाय में विघटन नहीं ।
निष्ठा-प्रबल हो देश हित । हो आचरण भी संयमित ।
निष्ठा-प्रबल हो देश हित । हो आचरण भी संयमित ।
प्राचीन संस्कृति के जगें संस्कार पावन सर्वदा ।
गाण्डीव अर्जुन का उठे, हनुमान की मारक गदा ।
कटिबद्ध जब प्रभु कार्य हित, हर आपदा विपदा टले ।
आओ चलो शाखा चलें, खेलें ध्वजा भगवा तले ।
प्रात: चलें संध्या चलें, चलते चलें चलते चलें॥
आदत बदलती संघ में, सेहत सुधरती संघ में ।
उत्थान के साधन यहाँ, ले सीख योगासन यहाँ ।
हर जिंदगी सादी बने, पर देह फौलादी बने।
नव-संगठनकर्ता बने, दारिद्र्य दुख-हर्ता बने ।
देखें परम वैभव नयन, दुर्गुण कलुष ईर्ष्या जले ।
आओ चलो शाखा चलें, खेलें ध्वजा भगवा तले ।
प्रात: चलें संध्या चलें, चलते चलें चलते चलें॥
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ReplyDeleteसुन्दर मनोहर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत!
ReplyDeleteविस्मित हूँ !