07 December, 2014

मैया गई बुढ़ाय, बड़े ने आँख तरेरी-




मेरी माँ की गोद में, भैया तू मत बैठ |
छूता ज्यों भैया बड़ा, छोटू जाता ऐंठ |

छोटू जाता ऐंठ, बड़ा भी उसे धकेले |
मेरी मेरी बोल, रोज ही करे झमेले | 

मैया गई बुढ़ाय, बड़े ने आँख तरेरी |
छोटा रहा नकार, रहा बक तेरी-मेरी || 

10 comments:

  1. बहुत खूब एक पूरा सफर ज़िंदगी का चंद लफ़्ज़ों में

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  2. एक कटु सत्य की ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...

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  3. आज की हकीकत को बेनकाब करती कड़वी सच्चाई ,सादर

    मईया गई बुढ़ाय हुआ घनघोर अँधेरा
    कह रविकर कविराज हुआ घर भूत का डेरा
    बड़का ग पगलाय छोटका देता है गली
    अपने ही घर में भईया अब होता नही सबेरा

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  4. अठखेलियों भरा छंद ...

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  5. वाह, बहुत ख़ूब...सुंदर अभिव्यक्ति...

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  6. मैया गई बुढाय तो बस हुई फालतू
    कौन रखेगा माँ को इस पर मै मै तू तू।

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  7. ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...

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