21 June, 2015

गूंगा चिल्लाया बहुत, बहरा देता कान-

गूंगा चिल्लाया बहुत, बहरा देता कान |
लूला करे सहायता, अंधा किन्तु सयान |

अंधा किन्तु सयान, लुटी लज्जा चौराहे |
देने गया बयान, मनुजता पड़ी कराहे |

कह रविकर कविराय, सदा चुपचाप रहूँगा । 
इधर नारि विलखाय, उधर चिल्लाये गूंगा ||

6 comments:

  1. बढ़िया और तर्क संगत कुण्डलिया।
    --
    आदरणीय रविकर जी ।
    आप इतना अच्छा लिखते हो,
    फिर भी लिखने में आलस करते हो।
    --
    प्रतिदिन लिखा करो न।

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  2. बहुत सुंदर शब्द ,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .!शुभकामनायें. आपको बधाई
    कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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