गाली गा ली प्रेम से, बढ़ा प्रेम-सद्भाव |
किन्तु बके जब क्रोध से, मनमुटाव-अलगाव |
मनमुटाव-अलगाव, हुई उत्पत्ति-अनोखी |
विष-अमृत का सार, बनाए गाली चोखी |
जब भी हो मतभेद, नहीं यदि जीभ सँभाली |
होवे बंटाधार, मुसीबत लावे गाली ||
किन्तु बके जब क्रोध से, मनमुटाव-अलगाव |
मनमुटाव-अलगाव, हुई उत्पत्ति-अनोखी |
विष-अमृत का सार, बनाए गाली चोखी |
जब भी हो मतभेद, नहीं यदि जीभ सँभाली |
होवे बंटाधार, मुसीबत लावे गाली ||
रविकर जी आपकी यह रचना बेहद दिलचस्प व सराहनीय है....आपने इस रचना में लोगों के द्वारा विभिन्न प्रकार के अपशब्दों के प्रयोगों का वर्णन किया है....ऐसी रचना का इंतज़ार शब्दनगरी के पाठकों को हमेशा रहता है...आपसे निवेदन है कि आप अपनी ऐसी रचनाओं का संकलन में प्रकाशित कर उनके पाठकों को अनुगृहित करें....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-06-2016) को "पात्र बना परिहास का" (चर्चा अंक-2369) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अच्छी पोस्ट !
ReplyDeleteहिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
वाह गाली गाकर दें तो चुहल नही तो लडाई की पहल।
ReplyDeleteवाह गाली गाकर दें तो चुहल नही तो लडाई की पहल।
ReplyDeleteबढ़िया ।
ReplyDeleteबढ़िया ।
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