बूढ़ा-खूसट मर गया, घर वाले बेचैन।
चलो वसीयत देख लें, क्यों काली हो रैन।
है कमीनी आदमी की जात रे।
आदमी की दिख गई औकात रे।।
दूर दूर से आ रही, बेटी बहन पतोह।
एक आँख तो रो रही, दूजी लेती टोह ।।
कर रही है सीरियल को मात रे।
आदमी की दिख गई औकात रे।
लकड़ी केरोसिन लिया, कंडे टायर ट्यूब।
गंगा जल घी भूलते, जली लाश क्या खूब।
भूल जाते दोस्त रिश्ते-नात रे।
आदमी की दिख गई औकात रे।।
फोटो पे माला चढ़ी, देते दिया जलाय।
धूप अगरबत्ती जली, श्रद्धा सुमन चढ़ाय।
छा गई यूँ बाप की बारात रे।
आदमी की दिख गई औकात रे।।
रोज ही दिखती है औकात अब तो आदत सी हो गई है
ReplyDeleteफिर भी कहता हूँ खुद को आदमी बेशर्मी से अब भी ।
बहुत सुन्दर ।
बहुत खूब !!
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