धनी पकड़ ले बिस्तरा, भाग्य-विधाता क्रूर ।
ले वकील आये सगे, रखा चिकित्सक दूर।।
घटी गाँव में नीम तो, कड़ुवाये हर गेह।
घटी मधुरता जीभ की, बढ़ी देह-मधुमेह।।
मरे कमर में बाँध बम, मात्र पैर सिर शेष |
मिली बहत्तर हूर तो, क्या करियेगा पेश ||
पैर गैर के क्यों पड़ें, आगे पैर बढ़ाय
प्राप्त सफलता खुद करें, धन्य धान्य सुख पाय।।
मैय्यत में भी न मिलें, अब तो कंधे चार |
खुद से खुद को ढो रही, लागे लाश कहार ||
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-07-2016) को "ईद अकेले मना लो अभी दुनिया रो रही है" (चर्चा अंक-2397) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'