तन्हाई में कर रही, यादें रविकर छेद।
रिसे उदासी छेद से, टहले प्रेम सखेद।।
मनमुटाव झूठे सपन, जोश भरें भरपूर।
टेढ़ी मेढ़ी जिन्दगी, चलती तभी हुजूर।।
बाज बाज आये नहीं, रहा अभी भी कूद।।
यद्यपि बाजीगर करे, उन्हे नेस्तनाबूद।
भजन सरिस रविकर हँसी, प्रभु को है स्वीकार।
हँसा सके यदि अन्य को, सचमुच बेड़ापार।।
करे गर्व क्या रूप पर, गुण पर भी क्या गर्व।
ज्ञान क्षमा बिन व्यर्थ मनु, क्रमिक सजाओ सर्व।।
कलमबद्ध हरदिन करें, वह तो रविकर पाप।
किन्तु कभी रखते नहीं, इक ठो दर्पण आप।।
दुख में जीने के लिए, तन मन जब तैयार।
छीन सके तब कौन सुख, रविकर से हरबार।।
पूरी करो जरूरतें, साथी रहे प्रसन्न।
बिन सींचे क्या खेत भी, रविकर देता अन्न।।
नौ सौ चूहे खाय के, बिल्ली हज को जाय।
चौराहे पर बैठ के, गिनती बूढ़ी गाय।।
सोरठा
शुरू योग अभियान, सीख ध्यान मुद्रा सरल।।
था मुद्रा में ध्यान, भोगी पारंगत हुआ।।
वाह सुन्दर।
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