27 December, 2016

लगा पराई आज, हुई है अपनी बेटी-


कुंडलियाँ
बेटी ठिठकी द्वार पर, बैठक में रुक जाय।
लगा पराई हो गयी, पिये चाय सकुचाय। 
पिये चाय सकुचाय, आज वापस जायेगी।
रविकर बैठा पूछ, दुबारा कब आयेगी।
देखी पति की ओर , दुशाला पुन: लपेटी।
लगा पराई आज, हुई है अपनी बेटी।।
दोहा
बेटी हो जाती विदा, लेकिन सतत निहार।
नही पराई हूँ कहे, जैसे बारम्बर।।

4 comments:

  1. बिलकुल सही कहा ,विवाह हो जाने के बाद बेटी अपने मायके में उतनी सहज और मुक्त नहीं रह पाती .

    ReplyDelete
  2. भावपूर्ण रचना।

    ReplyDelete
  3. सत्य वचन
    नव बर्ष की शुभकामनाएं
    http://savanxxx.blogspot.in

    ReplyDelete