कुंडलियां
रविकर इच्छा स्वप्न का, यूँ मत करना खून।
बल्कि काट नाखून सम, सच्चा मिले सुकून।
सच्चा मिले सुकून, जिन्दगी बढ़ती आगे ।
पढ़ आवश्यक पाठ, छोड़ दे स्वार्थ अभागे ।
कर परहित निष्काम, हमेशा आगे बढ़कर।
भली करेंगे राम, जिंदगी महके रविकर।।
दोहे
जीवन-नौका तैरती, भव-सागर विस्तार।
लोभ-मोह सम द्वीप दस, रोक रहे पतवार।।
रस्सी जैसी जिन्दगी, तने तने हालात्।
एक सिरे पर ख्वाहिसें, दूजे पे औकात।।
अस्त-व्यस्त यह जिन्दगी, रविकर रहा सँभाल।
डाल डाल खुशियाँ टंगी, पात पात जंजाल।।
चलो उड़ायें जिन्दगी, माँझा चकरी संग।
कटे नहीं काटो नहीं, रविकर कभी पतंग।।
है पहाड़ सी जिंदगी, झुककर चढ़ नादान |
रविकर तनकर फिर उत्तर, भली करें भगवान् ||
इम्तिहान है जिन्दगी, दुनिया विद्यापीठ।
मिले चरित्र उपाधि ज्यों, रंग बदलते ढीठ।।
मनमुटाव झूठे सपन, जोश भरें भरपूर।
टेढ़ी मेढ़ी जिन्दगी, चलती तभी हुजूर।।
असफल जीवन पर हँसे, रविकर धूर्त समाज।
किन्तु सफलता पर यही, ईर्ष्या करता आज।।
रविकर इच्छा स्वप्न का, यूँ मत करना खून।
बल्कि काट नाखून सम, सच्चा मिले सुकून।
सच्चा मिले सुकून, जिन्दगी बढ़ती आगे ।
पढ़ आवश्यक पाठ, छोड़ दे स्वार्थ अभागे ।
कर परहित निष्काम, हमेशा आगे बढ़कर।
भली करेंगे राम, जिंदगी महके रविकर।।
दोहे
जीवन-नौका तैरती, भव-सागर विस्तार।
लोभ-मोह सम द्वीप दस, रोक रहे पतवार।।
रस्सी जैसी जिन्दगी, तने तने हालात्।
एक सिरे पर ख्वाहिसें, दूजे पे औकात।।
अस्त-व्यस्त यह जिन्दगी, रविकर रहा सँभाल।
डाल डाल खुशियाँ टंगी, पात पात जंजाल।।
चलो उड़ायें जिन्दगी, माँझा चकरी संग।
कटे नहीं काटो नहीं, रविकर कभी पतंग।।
है पहाड़ सी जिंदगी, झुककर चढ़ नादान |
रविकर तनकर फिर उत्तर, भली करें भगवान् ||
इम्तिहान है जिन्दगी, दुनिया विद्यापीठ।
मिले चरित्र उपाधि ज्यों, रंग बदलते ढीठ।।
मनमुटाव झूठे सपन, जोश भरें भरपूर।
टेढ़ी मेढ़ी जिन्दगी, चलती तभी हुजूर।।
असफल जीवन पर हँसे, रविकर धूर्त समाज।
किन्तु सफलता पर यही, ईर्ष्या करता आज।।
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