दोहे
रोज शत्रु उकसा रहा, फिकरे कसे विपक्ष।
कहो युधिष्ठिर मौन क्यूँ, रविकर यक्ष समक्ष।।
मोदी सर हद से अधिक, ढीलापन बेकार।
सरहद पर भारी पड़े, महबूबा का प्यार।।
महबूबा के इश्क में, हरदिन पत्थर खाय।
दीवाना पागल हुआ, मैया करो उपाय।।
कुंडलियां
पलटन पैलटगन बिना, हो जाती असहाय।
नहीं पलटना जानती, बरबस पत्थर खाय।
बरबस पत्थर खाय, पलटना नेता जाने।
छप्पन इंची वक्ष, बनाये नये बहाने।
रविकर गन पर रोक, रोष में सारा जन गन।
मरें शिविर में वीर, मर्सिया गाये पलटन।।
नहीं पलटना जानती, बरबस पत्थर खाय।
बरबस पत्थर खाय, पलटना नेता जाने।
छप्पन इंची वक्ष, बनाये नये बहाने।
रविकर गन पर रोक, रोष में सारा जन गन।
मरें शिविर में वीर, मर्सिया गाये पलटन।।
धोखे से मारा करे, प्रतिद्वन्दी बरबंड।
घुसे कबड्डी बोलकर, करे खेल फिर भंड।
करे खेल फिर भंड, फिदाइन फाउल खेले।
मिले न लेकिन दंड, दंड वो धर धर पेले।
रक्तबीज उत्पन्न, कालिका खप्पर सोखे।
बचे नहीं अब दुष्ट, बहुत खायें हैं धोखे।।
घुसे कबड्डी बोलकर, करे खेल फिर भंड।
करे खेल फिर भंड, फिदाइन फाउल खेले।
मिले न लेकिन दंड, दंड वो धर धर पेले।
रक्तबीज उत्पन्न, कालिका खप्पर सोखे।
बचे नहीं अब दुष्ट, बहुत खायें हैं धोखे।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-05-2017) को
ReplyDeleteसरहद पर भारी पड़े, महबूबा का प्यार; चर्चामंच 2626
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खायें हैं धोखे -धो कर खा ही डालो अब तो .
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