07 May, 2017

दोहे -

फूँक मारके दर्द का, मैया करे इलाज।
वह तो बच्चों के लिए, वैद्यों की सरताज।

चक्षु-तराजू तौल के, भार बिना पासंग।
हल्कापन इन्सान का, देख देख हो दंग।।

बेमौसम ओले पड़े, चक्रवात तूफान।
धनी पकौड़ै खा रहे, खाये जहर किसान।।

चुरा सका कब नर हुनर, शहद चुराया ढेर।
मधुमक्खी निश्चिंत है, छत्ता नया उकेर।।

हर मकान में बस रहे, अब तो घर दो चार।
पके कान दीवार के, सुन सुन के तकरार।।

सीधे-साधे को सदा, सीधे साधे व्यक्ति।
टेढ़े-मेढ़े को मगर, साधे रविकर शक्ति।।

जार जार रो, जा रही, रोजा में बाजार।
रोजाना गम खा रही, सही तलाक प्रहार।।

छलके अपनापन जहाँ, रविकर रहो सचेत।
छल के मौके भी वहीं, घातक घाव समेत।।

पल्ले पड़े न मूढ़ के, मरें नहीं सुविचार।
समझदार समझे सतत्, चिंतक धरे सुधार।।

मृग-मरीचि की लालसा, घुटने पे दौड़ाय।
दम घुटने से अक्ल भी, घुटने में मर जाय।।

असफलता फलते फले, जारी रख संघर्ष।
दोनों ही तो श्रेष्ठ गुरु, कर वन्दना सहर्ष।।

कभी सुधा तो विष कभी, मरहम कभी कटार।
आडम्बर फैला रहे, शब्द विभिन्न प्रकार।।


मेरे मोटे पेट से, रविकर-मद टकराय।
कैसे मिलता मैं गले, लौटा पीठ दिखाय।।

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-05-2017) को
    संघर्ष सपनों का ... या जिंदगी का; चर्चामंच 2629
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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