गली गली गाओ नहीं, दिल का दर्द हुजूर।
घर घर मरहम तो नही, मिलता नमक जरूर।।
है पहाड़ सी जिन्दगी, चोटी पर अरमान।
रविकर झुक के यदि चढ़ो, हो चढ़ना आसान।।
टका टके से मत बदल, यह विनिमय बेकार ।
दो विचार यदि लो बदल, होंगे दो दो चार।।
भर दिन पैदल चल पिता, ले सौ टका बचाय।
रविकर दिन लेता बचा, पाँच हजार उड़ाय।।
बदले मौसम सम मनुज, वर्षा गर्मी शीत।
रंग-ढंग बदले गजब, गिरगिटान भयभीत।।
साँस खतम हसरत बचे, रविकर मृत्यु कहाय।
साँस बचे हसरत खतम, मनुज मोक्ष पा जाय।।
शत्रु छिड़क देता नमक, मित्र छिड़कता जान।
बड़े काम का घाव प्रिय, हुई जान-पहचान।।
साल रही रविकर कमी, प्रस्तुत एक मिसाल।
संग साल दर साल रह, कहे न दिल का हाल।।
रविकर तरुवर सा तरुण, दुनिया भुगते ऐब।
एक डाल नफरत फरत, दूजे फरे फरेब।
पूरे होंगे किस तरह, कहो अधूरे ख्वाब।
सो जा चादर तान के, देता चतुर जवाब।।
बड़ी सरलता से उसे, देते आप हराय।
जीत सकोगे क्या कभी, बोलो रविकर भाय।।
शब्दाडंबर पर आपके, भारी मेरा मौन।
लेकिन दोनो हारते, बोलो जीता कौन।।
सर्दी में जल काटता, वर्षा जल से बाढ़।
गर्मी से बेहाल जल, खीस बैठ के काढ़।।
गर मीसे अंबिया पकी, पना बना पी जाय।
गरमी से बेहाल तन, रविकर राहत पाय।।
खरी बात कड़ुवी दवा, रविकर मुंह बिचकाय ।
खुशी खुशी तू कर ग्रहण, ग्रहण व्याधि हट जाय।।
जब पीकर कड़ुवी दवा, मुँह बिचकाये बाल।
खरी बात सुन कै करें, बड़े लोग तत्काल।
माँसाहारी का बदन, रविकर कब्रिस्तान।
हरदिन कर मुर्दे दफन, फिर भी बाकी स्थान।।
कई छोड़कर के गये, सहकर के अपमान ।
निभा रहा रिश्ता मगर, रविकर मन नादान।।
वाह ।
ReplyDeleteवाहवाह ...
ReplyDeleteशत्रु छिड़क देता नमक, मित्र छिड़कता जान।
बड़े काम का घाव प्रिय, हुई जान-पहचान।।
लाजवाब... बेमिसाल....