कहे चालाक हर-गंगे, फिसलने पर नहाता है।
कृपण की जेब जब कटती, किया है दान, गाता है।
किसी की लुट रही अस्मत, खड़ा था मौन तब कायर--
गवाही में अदालत को, हुई शादी बताता है।
भयंकर हो रही बारिश, भयंकर जलजला आता।
लगे सब खोजने आश्रय, मनुज खग जीव घबराता।
तभी उस बाज को देखा, उड़ा वह मेघ के ऊपर।
कभी हिम्मत दिखाने से, नहीं वह बाज आता है।।
हुई कुल कोशिशें असफल, हँसी दुनिया उड़ाती है।
कभी हिम्मत नही हारा, सफलता हाथ आती है।
उड़ाते थे हँसी जो तब, उड़े हैं होश अब उनके
बुराई आज करते वे, उन्हें ईर्ष्या जलाती है।।
छोटे-बड़े झगड़े कई सम्पत्ति के होते रहे।
अपमान नारी का हुआ तो धैर्य नर खोते रहे।
पर भूमि के टुकड़े कई अभिशप्त सदियों से रहे
तलवार भाले गन मिसाइल तोप जो बोते रहे।।
जब भक्ति से भोजन बने तो भोग भोजन को कहे।
तब भूख को भी भक्ति से उपवास कह हर्षित सहे।
जब भक्ति से प्रभु पग धुले तो नीर चरणामृत हुआ।
यदि भक्तिमय है व्यक्ति तो मानव उसे हम कह रहे।।
कामार्थ का बैताल जब शैतान ने बढ़कर गढ़ा।
तो कर्म के कंधे झुका वो धर्म के सिर पर चढ़ा।
मुल्ला पुजारी पादरी परियोजना लायें नई
गिरिजाघरों मस्जिद मठों को पाठ वे देते पढा।
कीड़े-मकोड़े पक्षियों ने जिंदगी भर खूब खाये।
कीड़े-मकोड़े पक्षियों को किन्तु मरने पर पचाये।
गुजरात के जिस सिंह पर वह तीर वर्षों तक चलाया।
उसके चरण में आज रविकर पद्म की माला चढ़ाये।
मनस्थिति क्रोध की हो यदि, कभी निर्णय नहीं लेना।
अगर मन अत्यधिक हर्षित वचन बिल्कुल नही देना।
सदा परिणाम दें घातक विकट दोनो परिस्थितियाँ
करेगा वक्त शर्मिन्दा जमाने से मिले ठेना।।
हथेली की लकीरों से फकीरों को कहाँ मतलब।
हवाले जब हुआ रब के सँवारेगा वही तो अब।
लकीरों के फकीरो अब जरा तुम भी सुधर जाओ।
भरोसे भाग्य के झोली भरी है मित्र रविकर कब।।
जगत है विश्वविद्यालय, मनुज कुछ पाठ नित पढता|
परीक्षा जिंदगी देती, परिश्रम भाग्य फिर गढ़ता |
करेक्टर सी मिले डिग्री, कमाता नाम पढ़-पढ़ के
मगर कुछ शोध कर रविकर, फटाफट सीढियाँ चढ़ता ||
बहुत सुन्दर।
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