24 July, 2017

पसारे हाथ जाता वो नहीं सुख-शान्ति पाया है


पतन होता रहा फिर भी बहुत पैसा कमाया है ।

किया नित धर्म की निन्दा, तभी लाखों जुटाया है।
सहा अपमान धन खातिर, अहित करता हजारों का
पसारे हाथ जाता वो नहीं सुख-शान्ति पाया है।।

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26-07-2017) को पसारे हाथ जाता वो नहीं सुख-शान्ति पाया है; चर्चामंच 2678 पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. शानदार मुक्तक, शुभकामनाएं.
    रामराम
    #हिन्दी_ब्लॉगिंग

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