बड़ी बेचैन लगती है, परेशानी उठाती है।
बता री जिन्दगी कैसे, समय अपना बिताती है।
विचारों का लगे ताँता, तभी तो नींद उड़ जाती।
नसीबा सो रहा रविकर, जगाने मौत आती है।।
नित फोड़ कर दो नारियल हर-हर करूँ बम-बम करूँ।
सुख-शान्ति पा बम-बम रहूँ, फिर भी सदा बम से डरूँ।
तुम फोड़ते घातक पटाखे, बम कमर में बाँध के।
पाते बहत्तर हूर तुम, यह मामला क्या है गुरू।।
अकारण ही करे कोई अगर निंदा, पचा प्यारे।
बढ़ेंगे अन्यथा दुश्मन, करेंगे फिर दुखी सारे।
पचे दुख सुख पचे भोजन तभी कल्याण हो रविकर।
खले क्रमशः निराशा पाप चर्बी अन्यथा बढ़कर।।
चुरा के छाप छोड़ें वे हजारों मंच भी जीते।
चुरा ले आँख का काजल, इसी में वक्त कुल बीते।
बड़े बाजार में बेचा शहद खा के चुरा कर के।
रहे बेफिक्र मधुमक्खी मगर छत्ता पुनः भर के।।
हरे हों जख्म या सूखे कभी जग को दिखाना मत।
गली-कूँचे नगरपथ पर कभी निज दर्द गाना मत।
मिले मरहम नहीं घर में, मगर मिलते नमक-मिर्ची।
बचा दामन निकल रविकर, कभी आँसू बहाना मत।।
समस्याग्रस्त दुनिया की, समस्या जो बढ़ाते हैं।
यहीं फिलहाल ठहरो तुम, अभी उनसे मिलाते हैं।
जहाँ कुछ मूढ़ रविकर से, बने अति-आत्मविश्वासी
वहीं विद्वान शंका में, हमेशा मार खाते हैं।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-07-2017) को वहीं विद्वान शंका में, हमेशा मार खाते हैं; चर्चामंच 2677 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हमेशा की तरह । वाह।
ReplyDeleteबहुत ही नायाब मुक्तक, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग