आजादी दिन साठ का, सरयू जी के तीर।
पटरंगा में जन्मता, नश्वर मनुज शरीर।।
इंस्ट्रक्टर के रूप में, कर्मक्षेत्र धनबाद।
झाँसी चंडीगढ़ रहा, रहा अयोध्या याद।
आई आई टी बना, अब मेरा संस्थान।
रचूँ लोकहित छंद शुभ, शेष यही अरमान।
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धर्मपत्नी मिली सीमा मिली फिर तीन सन्तानें।
शिवा मनु स्वस्ति तीनों ही स्वयं का सत्य पहचाने।
पढ़े प्रौद्यौगिकी तीनों बढ़े प्रतियोगिता कर कर।
प्रतिष्ठित आज तीनों हैं पढ़ाई पूर्ण कर रविकर।।
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वर्णों का आंटा गूँथ-गूँथ,
शब्दों की टिकिया गढ़ता हूँ|
समय-अग्नि में दहकाकर, फिर
मद्धिम-मद्धिम तलता हूँ||
चढ़ा चासनी भावों की,
ये शब्द डुबाता जाता हूँ |
गरी-चिरोंजी अलंकार से,
फिर क्रम वार सजाता हूँ ||
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-07-2017) को वहीं विद्वान शंका में, हमेशा मार खाते हैं; चर्चामंच 2677 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग