कई सरकार खूंटी पर, रखी थी टांग डेरे में।
अधिकतर भक्त दुर्जन के रहे अबतक अंधेरे में।
जयतु जय जांच अधिकारी, अदालत की सदा जय जय
चमत्कारी बलात्कारी पड़ा है आज फेरे में।
(२)
शहर में आग भड़काई जहर से जीभ बुझवाई।
कहर ढाया गरीबों पर, सड़क पर भीड़ उफनाई।
दहर डेरा अंधेरा कर, उजाले का सपन बेचे।
चतुर-चालाक ने कितने भगत की जान है खाई।।
सही में इन्होंने क्या-क्या कर डाला
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर....सच को सच्चाई से उकेरती आपकी प्रस्तुति....लाजवाब....🙏🙏🙏
ReplyDeleteजय हो।
ReplyDeleteक्या बात है !
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर आभार ''एकलव्य"
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