भँवर सरीखी जिंदगी, हाथ-पैर मत मार।
देह छोड़, दम साध के, होगा बेडा पार ।।
चार दिनों की जिन्दगी, बिल्कुल स्वर्णिम स्वप्न।
स्वप्न टूटते ही लुटे, देह नेह धन रत्न।।
प्रश्न कभी गुत्थी कभी, कभी जिन्दगी ख्वाब।
सुलझा के साकार कर, रविकर खोज जवाब।।
रस्सी जैसी जिंदगी, तने तने हालात |
एक सिरे पे ख्वाहिशें, दूजे पे औकात ||
सकते में है जिंदगी, दिखे सिसकते लोग |
भाग भगा सकते नहीं, आतंकी उद्योग ||
असफल जीवन पर हँसे, रविकर धूर्त समाज।
किन्तु सफलता पर यही, ईर्ष्या करता आज।।
है पहाड़ सी जिन्दगी, चोटी पर अरमान।
रविकर झुक के यदि चढ़ो, हो चढ़ना आसान।।
इम्तिहान है जिन्दगी, दुनिया विद्यापीठ।
मिले चरित्र उपाधि ज्यों, रंग बदलते ढीठ।।
छूकर निकली जिन्दगी, सिहरे रविकर लाश।
जख्म हरे फिर से हुए, फिर से शुरू तलाश।।
जी जी कर जीते रहे, जग जी का जंजाल।
जी जी कर मरते रहे, जीना हुआ मुहाल।।
लगे कठिन यदि जिंदगी, उसको दो आवाज।
करो नजर-अंदाज कुछ, बदलो कुछ अंदाज।।
दुख में जीने के लिए, तन मन जब तैयार।
छीन सके तब कौन सुख, रविकर से हरबार।।
जीवन की संजीवनी, हो हौंसला अदम्य |
दूर-दृष्टि, प्रभु की कृपा, पाए लक्ष्य अगम्य ॥
जी जी कर जीते रहे, जग जी का जंजाल।
जी जी कर मरते रहे, जीना हुआ मुहाल।।
लगे कठिन यदि जिंदगी, उसको दो आवाज।
करो नजर-अंदाज कुछ, बदलो कुछ अंदाज।।
दुख में जीने के लिए, तन मन जब तैयार।
छीन सके तब कौन सुख, रविकर से हरबार।।
जीवन की संजीवनी, हो हौंसला अदम्य |
दूर-दृष्टि, प्रभु की कृपा, पाए लक्ष्य अगम्य ॥
जय मां हाटेशवरी....
ReplyDeleteहर्ष हो रहा है....आप को ये सूचित करते हुए.....
दिनांक 09/01/2018 को.....
आप की रचना का लिंक होगा.....
<a href="https://www.halchalwith5links.blogspot.com>पांच लिंकों का आनंद</a>
पर......
आप भी यहां सादर आमंत्रित है.....
जय मां हाटेशवरी....
ReplyDeleteहर्ष हो रहा है....आप को ये सूचित करते हुए.....
दिनांक 09/01/2018 को.....
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पांच लिंकों का आनंद
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कुलदीप जी को आभार।
ReplyDeleteवाह्ह्ह....लाज़वाब👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहो का समागम..!
ReplyDeleteSuch a wonderfuil line, publish your book with best
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