जिसपर अंधों सा किया, लगातार विश्वास।
अंधा साबित कर गया, रविकर वह सायास।।
बीज उगे बिन शोर के, तरुवर गिरे धड़ाम।
सृजन-शक्ति अक्सर सुने, विध्वंसक कुहराम।।
सत्य प्रगट कर स्वयं को, करे प्रतिष्ठित धर्म।
झूठ छुपा फिरता रहे, उद्बेधन बेशर्म।।
दो अवश्य तुम प्रति-क्रिया, दो शर्तिया जवाब।
लेकिन संयम-सभ्यता, का भी रखो हिसाब।।
चींटी से श्रम सीखिए, बगुले से तरकीब।
मकड़ी से कारीगरी, आये लक्ष्य करीब।।
कुत्ते भागे दुम दबा, जूता काटे पैर।
नमो नमो जपते रहो, अपनों से क्या बैर।।
लफ्फाजी भर जिंदगी, मक्खी भिनके आज।
धू-धू कर जलती चिता, थू-थू करे समाज।।
झड़ी लगा उपदेश की, घन-गुरु करे कमाल।
रविकर कुल्हड़-बुद्धि तो, खाये किन्तु उबाल।।
रफ़्ता रफ़्ता जिन्दगी, चली मौत की ओर।
रोओ या विहँसो-हँसो, वह तो रही अगोर।।
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