01 October, 2018

माँ को समर्पित-

पहली प्रस्तुति 
कुछ नगद बाकी उधारी
हाथ पीले पैर भारी
शीघ्र ही उतरी खुमारी
है प्रसव का दर्द जारी
क्षीण होती शक्ति सारी
माँ बनी बेटी तुम्हारी-
किन्तु नानी याद आये।
माँ हमारी मुस्कुराये।।

हो चुका शिशु माह भर का।

खुशनुमा माहौल घर का।
किन्तु मेरी नींद खोई
रात भर जागी न सोई
जन्म-घुट्टी नित पिलाती।
वक्त पर टीका दिलाती
ताकि बीमारी न आये।
माँ हमारी मुस्कराये।।

पिस रही दो पाट में अब।

पुत्र पति आवाज दें जब।
चैन से मैं सो सकी कब।
अर्थ माँ का शिशु सिखाता।
रोज वह पानी पिलाता।
दूध पीता जान खाता।
किन्तु उसका साथ भाये।
माँ हमारी मुस्कुराये।।

द्वितीय प्रस्तुति


कुँडलियाँ


फूँक मार कर दर्द का, मैया करे इलाज।

वह तो बच्चों के लिए, वैद्यों की सरताज।
वैद्यों की सरताज, नींद शिशु हेतु जरूरी।
दे संतुलित खुराक, कराये कसरत पूरी।
किन्तु स्वयं को भूल, जिए सर्वस्व वारकर।
अपनी निद्रा भूख, उड़ाये फूँक मारकर।।

डॉगी क्या गायब हुआ, पागल पुलिस विभाग।

भागदौड़ करता मगर, पाया नहीं सुराग। 
पाया नहीं सुराग, मातहत भी दौड़ाया।
तभी वहाँ पर फोन, एक मुखबिर का आया।
वृद्धाश्रम की ओर, पुलिस फिर झटपट भागी।
वृद्धा माँ के चरण, चाटता पाया डॉगी।।

मोटर में लिख घूमते, माँ का आशीर्वाद ।

जय माता दी बोलते, कर पावन अरदास ।
कर पावन अरदास, निकल माँ बाहर घर से ।
रोटी को मुहताज, कफ़न की खातिर तरसे ।
कह रविकर पगलाय, कहीं खाती माँ ठोकर ।
करते वे तफरीह, ढूँढती माँ को मोटर ।। 

आज पालती पौत्र को, पहले पाली पूत ।

पौत्र गरम मूते तनिक, आग रहा सुत मूत ।
आग रहा सुत मूत, टिफिन तब डबल बनाया ।
लेकिन चारो पहर चाय तक को तरसाया ।
किया बाल हठ पूर्ण,  किन्तु अब बात सालती ।
आँख रही अब मींज, मोतिया-बिन्द पालती ।।

पुत्र-जन्म से पितृ-ऋण, चुका चुका इंसान ।

किन्तु चुकेगा मातृ-ऋण, कह कैसे नादान |
कह कैसे नादान, सुनो पुन्वंशा माता | 
बिना सुपुत्री जन्म, नहीं यह ऋण चुक पाता |
सदा क्षम्य गुण-सूत्र, मगर मत कन्या मारो ।
हुई  पिता से उऋण, मातृ-ऋण चलो उतारो ।।

तृतीय प्रस्तुति


काम हरि का नाम आये । सीख माँ की  काम आये।।


गर गलत घट-ख्याल आए

रुत सुहानी बरगलाए ।
कुछ कचोटे, काट खाए
बात कोई बन न पाये
रहनुमा भी चूक जाए।
वक्त ना बीते बिताए
सीख माँ की  काम आए।।1।।काम हरि ---

जो कभी अवसाद में हो

या कभी उन्माद में हो
सामने या बाद में हो,
तथ्य हर संवाद में हो
शर्म  हर औलाद में हो,
नाम कुल का ना डुबाये-
सीख माँ  की  काम आये- ।।2।।काम हरि--

कोख में नौ माह ढोई,

दूध का ना मोल कोई,
रात भर जागी न सोई,
अश्रु से आँखे भिगोई
सदगुणों के बीज बोई
पौध कुम्हलाने न पाए
सीख माँ  की  काम आये ।।3।। काम हरि-

चतुर्थ प्रस्तुति: विविध छंद

(1)
नौ माह तक माँ राह ताकी आह होंठो में दफन।
दो साल तक दुद्धू पिला शिशु-लात खाई आदतन।
माँ बुद्धि विद्या पुष्टता हित नित्य नव करती जतन ।
पर राह ताके प्रौढ़ माँ फिर द्वार पर ओढ़े कफन।। 
(2)
नारि सँवार रही घर-बार, पिता पति पूत कि बीच बटाई।
कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई ।
सेवत नेह समर्पण से कुल, नित्य नयापन लेकर आई ।
जीवन में अधिकार मिले कम, किन्तु सदा करतव्य  निभाई ।।
(3)
बदन रोटी सरिस बेली, सभी की मातु अलबेली।
सिकी हरदिन कई बेला, सदा हर आँच खुद झेली।
करे परवाह घरभर की करें पर वाह कब दूजे।
मगर इस देवि को कोई बुढ़ापे में नहीं पूजे।।

कहाँ कभी सोती अम्मा। बार-बार रोती अम्मा।।
हाथ हुए थे जब पीले । हुए नयन तब भी गीले।
जब जब पैर हुए भारी। शिशु की लात सहे नारी
प्रसव दर्द चुपचाप सहे। अश्रु पसीना रक्त बहे।
किन्तु रुदन शिशु का सुनकर, हँसे नारि माता बनकर।
पुन: हँसी खोती अम्मा। बार-बार रोती अम्मा।।

दो पाटों के बीच पिसे। कहो उपेक्षित करे किसे।
ज्वर से पीड़ित शिशु होता। ममता का धीरज खोता।
नानी याद कराये सुत। माँ का मन बहलाये सुत।
जब भी सुत को चोट लगे। फूँक मार माँ उसे ठगे-
किन्तु दुखी होती अम्मा। बार बार रोती अम्मा।।
घुट्टी दूध पिलाई अम्मा। खेल-खिलौने लाई अम्मा।
मालिस कर नहलाई अम्मा। मीठी लोरी गाई अम्मा।
किन्तु नहीं जब शिशु सोया। और कभी दिनभर रोया।
खाया पिया नहीं कुछ भी। समझ न सकी कहीं कुछ भी।
बेचैन बहुत होती अम्मा। बार बार रोती अम्मा।।
मुक्तक
शिशु लात मारा कोख में, अम्मा-तड़प के रो पड़ी।
जब चोट बेटे को लगी, रो-रो दिखाई हड़बड़ी।
खाया नहीं जब पुत्र खाना, रो पड़ी माता मगर-
खाना न दे जब पुत्र तो, रोये नहीं, ताके घड़ी।।

2 comments:

  1. वाह नमन माँ को । बहुत दिनों के बाद वही लाजवाब।

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  2. नमन इन पंक्तियों को ...
    माँ को समर्पित भाव ... इतने गज़ब ... अभिव्यक्ति की पराकाष्ठ ...

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