जब से झोंकी आँख में, रविकर तुमने धूल।
अच्छे तुम लगने लगे, हर इक अदा कुबूल।।
भाषा वाणी व्याकरण, कलमदान बेचैन।
दिल से दिल की कह रहे, जब से प्यासे नैन।।
जिसपर अंधों सा किया, लगातार विश्वास।
अंधा साबित कर गया, रविकर वह सायास।।
नहीं हड्डियां जीभ में, पर ताकत भरपूर |
तुड़वा सकती हड्डियां, देखो कभी जरूर ||
तुम तो मेरी शक्ति प्रिय, सुनती नारि दबंग।
कमजोरी है कौन फिर, कहकर छेड़ी जंग।।
पत्नी पूछे हो कहाँ, कहे पड़ोसन पास।
वो फिर बोली 'किस'-लिए, पति बोला यस-बॉस।।
मार्ग बदलने के लिए, यदि लड़की मजबूर |
कुत्ता हो या आदमी, मारो उसे जरूर ||
देह जलेगी शर्तिया, लेकर आधा पेड़।
एक पेड़ तो दे लगा, दे आंदोलन छेड़।।
वृक्ष काट कागज बना, लिखते वे सँदेश |
"वृक्ष बचाओ" वृक्ष बिन, बिगड़ेगा परिवेश ||
मिला कदम से हर कदम, चलते मित्र अनेक।
कीचड़ किन्तु उछालते, चप्पल सम दो-एक।।
सम्बन्धों के मध्य में, आवश्यक विश्वास।😊
करो सुनिश्चित वो कहीं, जाय न पत्नी पास।।
पैर न ढो सकते बदन, किन्तु न कर अफसोस।
पैदल तो जाना नही, तत्पर पास-पड़ोस ।।
अरे भगोने चेत जा, ये चमचे मत पाल |
झोल छोड़कर वे सभी, लेंगे माल निकाल ||
कंगारू सी मैं बनूँ, दे दो प्रभु वरदान।
ताकि फोन हो हाथ मे, थैली में सन्तान।।
बेमौसम ओले पड़े, चक्रवात तूफान।
धनी पकौड़ै खा रहे, खाये जहर किसान।।
चाय नही पानी नही, पीता अफसर आज।
किन्तु चाय-पानी बिना, करे न कोई काज।।
दिनभर पत्थर तोड़ के, करे नशा मजदूर।
रविकर कुर्सी तोड़ता, दिखा नशे में चूर।।
चुरा सका कब नर हुनर, शहद चुराया ढेर।
मधुमक्खी निश्चिंत है, छत्ता नया उकेर।।
आँधी पानी बर्फ से, बचा रही जो टीन।
ताना सुनती शोर का, ज्यों गार्जियन-नवीन।।
जिस सुर में माँ-बाप को, देते तुम आवाज।
पुत्र उसी सुर का करे, रविकर नित्य रियाज।।
श्याम सलोने सा रहा, सुंदर रविकर बाल ।
भैरव बाबा दे बना, सांसारिक जंजाल।।
सोना सीमा से अधिक, दुखदाई है मित्र।
चोर हरे चिन्ता बढ़े, बिगड़े स्वास्थ्य चरित्र।
टूटे यदि विश्वास तो, काम न आये तर्क।
विष खाओ चाहे कसम, पड़े न रविकर फर्क।।
होती पाँचो उँगलियाँ, कभी न एक समान।
मिलकर खाती हैं मगर, रिश्वत-धन पकवान ।।
बड़ा नही धन से बने, मन्सूबे मत पाल।
तेल मसाला ले नमक, दही उड़द की दाल।|
पहली कक्षा से सुना, बैठो तुम चुपचाप।
यही आज भी सुन रहा, शादी है या शाप।।
रहा तरस छह साल से, लगे निराशा हाथ |
दिखी आज आशा मगर, दो बच्चों के साथ ||
जाग चुका अब हर युवा, करे पतंजलि पेस्ट।
बिना डेढ़ जीबी पिये, कभी न लेता रेस्ट।।
दल के दलदल में फँसी, मुफ्तखोर जब भेड़ ।
सत्ता कम्बल बाँट दे, उसका ऊन उधेड़ ।।
गली गली गाओ नहीं, दिल का दर्द हुजूर।
घर घर मरहम तो नही, मिलता नमक जरूर।।
चंद चुनिंदा मित्र रख, जिंदा रख हर शौक।
ठहरेगी बढ़ती उमर, करे जिक्र हर चौक।|
शीलहरण पे पढ़ रही, भीड़ व्याह के मन्त्र |
सहनशील-निरपेक्ष मन, जय जय जय जनतंत्र ||
अधिक आत्मविश्वास में, इस धरती के मूढ़ |
विज्ञ दिखे शंकाग्रसित, यही समस्या गूढ़ ||
सुबह-शाम सुलगा रहे, धूप-अगर-लुहबान |
मच्छर क्यों भागे नहीं, क्यों न दिखे भगवान् ||
धर्म-कर्म पर जब चढ़े, अर्थ-काम का जिन्न |
मंदिर मस्जिद में खुलें, नए प्रकल्प विभिन्न ||
धनी पकड़ ले बिस्तरा, भाग्य-विधाता क्रूर ।
ले वकील आये सगे, रखा चिकित्सक दूर।।
घूम घूम कर बेचता, ग्वाला दूध उधार।
ढूंढ ढूंढ मदिरा नगद, किनता किन्तु बिहार।।
चले शूल पर तो चुभा, जूते में बस एक।
पर उसूल पर जब चले, चुभते शूल अनेक।।
नोटों की गड्डी खरी, ले खरीद हर माल।
किन्तु भाग्य परखा गया, सिक्का एक उछाल।।
रविकर रोने के लिए, मिले न कंधा एक।
चार चार कंधे मिले, बिलखें आज अनेक।।
वैसे तो टेढ़े चलें, कलम शराबी सर्प।
पर घर में सीधे घुसें, छोड़ नशा विष दर्प।।
पूरे होंगे किस तरह, कहो अधूरे ख्वाब।
सो जा चादर तान के, देता चतुर जवाब।।
रविकर अच्छे कर्म कर, फल की फिक्र बिसार।
आम संतरा सेब से, पटे पड़े बाजार।।
खले मुखर की वाह तब, समझदार जब मौन।
काव्य शक्ति-सम्पन्न तो, कवि को भूले कौन।।
दर्पण जैसे दोस्त की, यदि पॉलिस बदरंग।
रविकर छोड़े शर्तिया, प्रतिछाया भी संग।
लेडी-डाक्टर खोजता, पत्नी प्रसव समीप।
बुझा बहन का जो चुका, रविकर शिक्षा-दीप।।
अपनी गलती पर बने, रविकर अगर वकील।
जज बन के खारिज़ करे, पत्नी सभी दलील।।
किया बुढ़ापे के लिए, जो लाठी तैयार।
मौका पाते ही गयी, वो तो सागर पार।
फूँक मारके दर्द का, मैया करे इलाज।
वह तो बच्चों के लिए, वैद्यों की सरताज।
चक्षु-तराजू तौल के, भार बिना पासंग।
हल्कापन इन्सान का, देख देख हो दंग।।
चुरा सका कब नर हुनर, शहद चुराया ढेर।
मधुमक्खी निश्चिंत है, छत्ता नया उकेर।।
हर मकान में बस रहे, अब तो घर दो चार।
पके कान दीवार के, सुन सुन के तकरार।।
मेरे मोटे पेट से, रविकर-मद टकराय।
कैसे मिलता मैं गले, लौटा पीठ दिखाय।।
रिश्ते 'की मत' फ़िक्र कर, यदि कीमत मिल जाय।
पहली फुरसत में उसे, देना तुम निपटाय।।
नौ सौ चूहे खाय के, बिल्ली हज को जाय।
चौराहे पर बैठ के, गिनती बूढ़ी गाय।।
कुल के मंगलकार्य में, करे जाय तकरार।
हर्जा-खर्चा ले बचा, चालू पट्टीदार ।।
अपने मुंह मिट्ठू बनें, किन्तु चूकता ढीठ।
नहीं ठोक पाया कभी, रविकर अपनी पीठ।।
अजगर सो के साथ में, रोज नापता देह।
कर के कल उदरस्थ वह, सिद्ध करेगा नेह।।
खड्ग तीर चाकू चले, बरछी चले कटार।
कौन घाव गहरा करे, देखो ताना मार ।।
नोटों की गड्डी खरी, ले खरीद हर माल।
किन्तु भाग्य परखा गया, सिक्का एक उछाल।।
मजे मजे मजमा जमा, दफना दिया जमीर |
स्वार्थ-सिद्ध सबके हुवे, लटका दी तस्वीर ||
झूठे दो-दो चोंच कर, लड़ें चोंचलेबाज |
एक साथ फिर बैठते, करे परस्पर खाज ||
अगर वेद ना पढ़ सके, कर ले 'रविकर' जाप ।
व्यक्ति-वेदना पढ़ मगर, हर उसका संताप ।।
बेलन ताने नारि तो, चादर तानें लोग |
ताने मारे किन्तु जब, टले कहाँ दुर्योग ||
जाति ना पूछो साधु की, कहते राजा रंक |
मजहब भी पूछो नहीं, बढ़ने दो आतंक ||
मयखाने में शाम को, जो कुछ आया भूल।
सुबह-सुबह पहुँचा गया, रविकर नामाकूल।।😊
घड़ियों के रिश्ते-सुई, रहें परस्पर मग्न।
घड़ी घड़ी मिलते नहीं, किन्तु सदा संलग्न।।
टेढ़ा पति सीधा हुआ, टेढ़ी रोटी गोल।।
गोल-गोल इस यंत्र का, नाम न रविकर खोल।।
रविकर जीवन-पुस्तिका, पलटे पृष्ट हजार।
वैसे के वैसे मिले, शब्द-अर्थ हर बार।।
खुद से नाड़ा बाँध ले, वो ही बाल सयान।
ढीला होने दे नहीं, वही तरुण बलवान।।
आत्म-मुग्ध विद्वान का, उस विमूढ सा हाल।
बैठ गधे पर जो चले, सिर पर उठा बवाल।।
जब #दारू हर सोच को, करे प्रकट बिंदास।
तब अपनी #दारा करे, बन्द सकल बकवास।।
मयखाने में शाम को, जो कुछ आया भूल।
सुबह-सुबह पहुँचा गया, रविकर नामाकूल।।😊
घड़ियों के रिश्ते-सुई, रहें परस्पर मग्न।
घड़ी घड़ी मिलते नहीं, किन्तु सदा संलग्न।।
टेढ़ा पति सीधा हुआ, टेढ़ी रोटी गोल।।
गोल-गोल इस यंत्र का, नाम न रविकर खोल।।
रविकर जीवन-पुस्तिका, पलटे पृष्ट हजार।
वैसे के वैसे मिले, शब्द-अर्थ हर बार।।
खुद से नाड़ा बाँध ले, वो ही बाल सयान।
ढीला होने दे नहीं, वही तरुण बलवान।।
आत्म-मुग्ध विद्वान का, उस विमूढ सा हाल।
बैठ गधे पर जो चले, सिर पर उठा बवाल।।
जब #दारू हर सोच को, करे प्रकट बिंदास।
तब अपनी #दारा करे, बन्द सकल बकवास।।
मार्ग बदलने के लिए स्वान हो मजबूर |
ReplyDeleteबतलाइए अब आपही मारे किसे हजूर ||
ReplyDeleteSelf-publish a Book in India with India’s leading Self book publishing company
http://www.bookrivers.com/