गुज़र से गए दर्दो-एहसास सारे, तुम्हारे सहारे
गुजरने लगे रात-दिन फिर हमारे, तुम्हारे सहारे
उड़ा न सके राख, दिल के जले की, बवंडर नकारेकोई ज्वार-भांटा न आया सदी से समंदर किनारेहारे को ' रविकर' कि जीता वही जो सिकंदर पुकारेचूँ-चूँ ने चोंचों से चुन-चुन के फेंके, जो जलते अंगारे
धड़कने लगा दिल, न हिम्मत ये हारे न तुमको बिसारे
गुजरने लगे रात-दिन फिर हमारे, तुम्हारे सहारे
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