रे पुष्पराज-
सुगंध तेरी पा
सम्मोहित सी मैं
कर कांटो की अनदेखी
आत्मविश्वास से लबरेज
तेरे पास आ गई -
और धोखा खा गई .
तूने छल-कपट से
धर-पकड़ कर
गोधूलि के समय
कैद कर लिया
व्यभिचार भी किया
सुबह होने पर धकेल दिया
कटु-सत्य !
तू तो महा धूर्त है.
मद-कण से युक्त महालोलुप है .
तेरे गुल का अर्थ है-
केवल दाग
सरसों का सौंदर्य देख-
संसार को देता है सुगंध और स्वाद
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