मेरा बाप मुझमे जिन्दा है
हो मामला हल्का-फुल्का या विषय गंभीर हो
घर की हो तकलीफ कोई, या पराई पीर हो
व्यापार में मुनाफा हो, चाहे जितना घाटा हो
बच्चों को प्यार किया, चाहे भर दम डांटा हो
वो मेहनतकश परिंदा है
मेरा बाप मुझमे जिन्दा है
अवसाद से वो ग्रस्त हो, उन्माद में आसक्त हो
कर रहा हो बन्दगी, या पीकर पूरा मस्त हो
हो मदभरी संध्या, या नीला आसमान हो
हर बुरे की करता निंदा है
मेरा बाप मुझमे जिन्दा हैव्यापार में मुनाफा हो, चाहे जितना घाटा हो
बच्चों को प्यार किया, चाहे भर दम डांटा हो
वो मेहनतकश परिंदा है
मेरा बाप मुझमे जिन्दा है
अवसाद से वो ग्रस्त हो, उन्माद में आसक्त हो
कर रहा हो बन्दगी, या पीकर पूरा मस्त हो
हर दम प्रभु का बन्दा है
मेरा बाप मुझमे जिन्दा है हो मदभरी संध्या, या नीला आसमान हो
कठिनाइयों के दौर हों , या सफ़र आसान हो
बस जोखिम भी शर्मिंदा है
मेरा बाप मुझमे जिन्दा है
बहुत सुन्दर रचना है। बाकी कवितायें भी अभी पढता हूँ| यदि वर्ड वैरिफिकेशन हटा दें तो टिप्पणी करना आसान हो जायेगा।
ReplyDeleteमेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है आपकी टिप्पणी.
ReplyDeleteविगत 16 नवम्बर को पिता के देहावसान के बाद
की पंक्तियाँ हैं ये. धन्यवाद