गर गलत घट-ख्याल आये,
रुत सुहानी बरगलाए
रुत सुहानी बरगलाए
कुछ कचोटे काट खाए,
रहनुमा भी भटक जाए
वक्त न बीते बिताये,
काम हरि का नाम आये- सीख माँ की काम आये--
रहनुमा भी भटक जाए
वक्त न बीते बिताये,
काम हरि का नाम आये- सीख माँ की काम आये--
हो कभी अवसाद में जो,
या कभी उन्माद में हो
सामने या बाद में हो,
कर्म सब मरजाद में हो
शर्म हर औलाद में हो,
नाम कुल का न डुबाये-
काम हरि का नाम आये- सीख माँ की काम आये--
कोख में नौ माह ढोई,
दूध का न मोल कोई,
रात भर जग-जग के सोई,
कष्ट में आँखे भिगोई
सदगुणों के बीज बोई
पौध कुम्हलाने न पाए
काम हरि का नाम आये- सीख माँ की काम आये--
(Zeal के लेखों से प्रेरित रचना)
JABARDAST . .
ReplyDeleteयार!
ReplyDeleteचेहरा नजर नहीं आता ,
या यूँ कहे कि बस चेहरा ही है चित्र में-------
आजकल मुझे follow करने वाले बढ़ गए हैं
कुछ और हेल्प कर दो
कोख में नौ माह ढोई,
ReplyDeleteदूध का न मोल कोई,
रात भर जग-जग के सोई,
कष्ट में आँखे भिगोई
सदगुणों के बीज बोई...माँ शब्द ही ..
परमेश्वर के अषीम प्रेम का प्रतीक है....
अति सुन्दर रचना ..
सादर अभिनन्दन