ये जिन्दगी इतनी आसान नहीं प्यारे |
गैर तो गैर अपने भी मेहरबान नहीं प्यारे ||
वे रिश्ते जब अपनी कीमत तय कर ले |
मोल चुका देने में, नुकसान नहीं प्यारे ||
अक्सरहां लोग बात करते हैं उसूलों की |
टूट जाने से जिनके, परेशान नहीं प्यारे ||
जरुरत पर तुरतै, गुर्दा दिया निकाल |
जिगर में किन्तु उनके, एहसान नहीं प्यारे ||
कमोवेश एक जैसा हाल है कागा---
कोयल की चाल का निदान नहीं प्यारे ||
गुम-सुम सा आज, गांव का बरगद अपना |
पीपल पेड़ का बाकी निशान नहीं प्यारे ||
जरुरत पर तुरतै, गुर्दा दिया निकाल |
ReplyDeleteजिगर में किन्तु उनके, एहसान नहीं प्यारे
सही अभिव्यक्ति.रविकार जी बधाई....
आभार
ReplyDeleteशालिनी जी
खूबसूरत गज़ल .
ReplyDeleteफौलोअर्स का गेजेट लगाइए ..नहीं तो पाठकों का पहुंचना मुश्किल होगा ..
आभार
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप जी
"फौलोअर्स का गेजेट"
ReplyDeleteके लिए क्या प्रोसेस है कृपया जानकारी दें|
गुम-सुम सा आज, गांव का बरगद अपना |
ReplyDeleteपीपल पेड़ का बाकी निशान नहीं प्यारे ...
गाँव उजड़ रहे हैं। हरियाली कम हो रही है और उसी के साथ खुशहाली भी।
.
@ गाँव उजड़ रहे हैं।
ReplyDeleteहरियाली कम हो रही है और
उसी के साथ खुशहाली भी
चिंतन का विषय है |
आभार
गुम-सुम सा आज, गांव का बरगद अपना |
ReplyDeleteपीपल पेड़ का बाकी निशान नहीं प्यारे ||
kitni sunderta se aapne aapni baat kahi hai.
sabhi sher khubsurat hain
rachana