03 June, 2011

भावों का बाजार खुला, हम सौदा कर बैठे

ब्लाग-विलासी   दुनिया में  जो जीव विचरते हैं  

सुख-दुःख, ईर्ष्या-द्वेष, तमाशा जीते-मरते हैं |

 

सुअर-लोमड़ी-कौआ- पीपल, तुलसी-बरगद-बिल्व 

अपने गुण-कर्मों  पर अक्सर व्यर्थ अकड़ते हैं |     

तूती*  सुर-सरिता जो साधे, आधी आबादी  
मैना के सुर में सुर देकर  "हो-हो"  करते हैं |

हक़ उनका है जग-सागर में,  फेंके चाफन्दा*
जीव-निरीह  फंसे जो आकर,  आहें  भरते  हैं |

भावों का बाजार खुला,  हम सौदा कर  बैठे
इस जल्पक* अज्ञानी  के तो बोल तरसते हैं ||
जल्पक = बकवादी         तूती =छोटी जाति का तोता
चाफन्दा = मछली पकड़ने का विशेष  जाल
सुअर-घृणित वृत्ति        लोमड़ी-मक्कारी         कौआ-चालबाजी  
पीपल-ध्यान   तुलसी-पवित्रता    बरगद-सृष्टि      बिल्व-कल्याण

3 comments:

  1. bahut sundar aur sateek likha hai.

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  2. Dear Sir,
    aaj aap ke blag ki kai posts padha. din bhar ke kaam kaaj ke baad raat 1:40 am pe mujhe ye comment post karte huye sara din saarthak sa hota dikh raha hun. Soch raha tha kis post pe comment karoon...socha is shandaar khule andaaz ko hi salaam kar loon...baaki posts pe pehle se bahot saare log comments de chuke hain'

    Warm regards,
    Chakresh

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