29 June, 2011

ट्रक- ट्रैक्टर से ही बचे, झूल रही सरकार |

 पूजा खातिर चाहिए सवा रुपैया फ़क्त  |
हुई चवन्नी बंद तो खफा हो गए भक्त ||


कम से कम अब पांच ठौ,  रूपया पावैं पण्डे |
पड़ा चवन्नी छाप का,   नया  नाम  बरबंडे ||

बहुतै खुश होते भये,  सभी  नए भगवान्  |
चार गुना तुरतै हुआ, आम जनों का दान ||

मठ-मजार के नगर में, भर-भर बोरा-खोर |
भ'टक साल में भेजते, सिक्के सभी बटोर ||  |

भ'टक-साल सिक्का गलत, मिटता वो इतिहास |
जो काका के स्नेह सा,  रहा  कलेजे  पास ||

अन्ना के विस्तार को,  रोकी ये सरकार |
चार-अन्ने को लुप्त कर, जड़ी भितरिहा मार ||

बड़े  नोट  सब  बंद हों, कालेधन  के  मूल |
मठाधीश होते खफा, तुरत गयो दम-फूल ||

महाप्रभु  के  कोष   में,  बस  हजार  के नोट |
सोना चांदी-सिल्लियाँ,   रखें नोट कस छोट ||

बिधि-बिधाता जान लो, होइहै कष्ट अपार |
ट्रक- ट्रैक्टर से ही बचे, गर झूली सरकार ||

5 comments:

  1. पूजा खातिर चाहिए सवा रुपैया सख्त |
    हुई चवन्नी बंद तो खफा हो गए भक्त ||
    सही कहा रवि जी साथ ही दिक्कत आ गयी उन्हें जिन्होंने रखे थे चव्वानी के भर कर बोरे बंद.

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  2. पाँच रुपैया न्यूनतम पायं शर्तिया पण्डे |
    पाय चवन्नी छाप खुश, नये मोल बरबंडे ||
    सबसे ज्यादा फ़ायदा पंडों को ही होगा .बढ़िया व्यंग्य .सार्थक पोस्ट .आभार

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  3. किस-किस की तारीफ़ करूँ सारे दोहे एक से बढ़कर एक

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  4. बहुत सुंदर, क्या बात है।

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  5. बहुत सुंदर, क्या बात है।

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