(1)
पंचायत
जिसके परमेश्वर हैं पञ्च |
जिसके परमेश्वर हैं पञ्च |
जो कराएँ पंचनामा
करे प्रपंच--
(2)
करे प्रपंच--
शोभित मंच ||
बड़े बंचक--
महा टंच --
शर्म नहीं रंच || (2)
तूने बड़ी भूल की,
जो दोस्ती क़ुबूल की |
जो दोस्ती क़ुबूल की |
था निठल्ला घूमता,
व्यर्थ में मशगूल की ||
व्यर्थ में मशगूल की ||
(3)
जिंदगी जीते हैं,
मदिरा पीते हैं |
मदिरा पीते हैं |
भावों की क्या ?
घट-घट रीते हैं ||
घट-घट रीते हैं ||
(4)
महफूज़ हम क्योंकर रखे
अपना ईमान ?
अपना ईमान ?
सुन्दरता पर अपने करो जो,
तुम गुमान ||
तुम गुमान ||
है तबीयत में तुम्हारे
इत्मीनान--
इत्मीनान--
सितम सहते
बंद कर अपनी जुबान ||
बंद कर अपनी जुबान ||
(5)
तू नहीं तेरी यादें हैं वो,
अधिक सताती हैं जो ||
(6)
ऐसा उठा-उठा के पटका है मेरा दिल.
लाखों करम हुए पर चूर न हुआ ||
(7)
राजनेता और बेईमानी मस्त --
मीडिया T R P बढाने में व्यस्त
कर्मचारी भ्रष्ट
चोरों की गस्त
सज्जन त्रस्त
सच्चाई अस्त |
और
महंगाई ग्रस्त--
आम जनता पस्त
झेले कष्ट |
(7)
राजनेता और बेईमानी मस्त --
मीडिया T R P बढाने में व्यस्त
कर्मचारी भ्रष्ट
चोरों की गस्त
सज्जन त्रस्त
सच्चाई अस्त |
और
महंगाई ग्रस्त--
आम जनता पस्त
झेले कष्ट |
प्रवक्ता व्यस्त --
भाई हमें तो सारे के सारे अच्छे लगे
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व् सार्थक रचना प्रस्तुत की है आपने .आभार
ReplyDeleteक्रम लगाना कठिन प्रतीत हो रहा है.सभी अच्छी लगी .बहुत...
ReplyDeleteपंचनाम से दोस्ती कर मदिरा पी तबीयत व यादों की उठापटक नेता मस्त जनता त्रस्त
ReplyDeleteप्रिय रविकर जी सुन्दर रचना टिप्पणी में कर्म लगाना उचित नहीं वैसे जो अधिक भायीं ७-१-६ -
ReplyDeleteलुटाते रहिये ऐसे ही -लुटने वाले की आँखें तो खुलें
शुक्ल भ्रमर ५
टिप्पणी में क्रम पढ़ें कृपया
ReplyDeleteहिंदी बनाने का उपकरण लगा अच्छा किया
जिसके परमेश्वर हैं पञ्च |
ReplyDeleteजो कराएँ पंचनामा
करे प्रपंच--
शोभित मंच ||
बड़े बंचक--
महा टंच --
शर्म नहीं रंच ||
bahut sahi varnan kiya hai aapne aaj ke panch parmeshwar nahi rahe.
बहुत खूब रविकर जी .आभार
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