शान्ति-प्रिय होते सदा, जिनको प्रिय सम्मान |
करते छल हद तोड़ कर, माया जिनके प्राण |
माया जिनके प्राण, डुबाते सारे रिश्ते |
शांतिप्रिय जो लोग, आज के वही फ़रिश्ते |
पर रविकर यह शांति, नहीं श्मशान घाट की |
करे कर्म की पूजा , न कि जोड़-गांठ की ||
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गलती कर कर के बने, महा-अनुभवी लोग |
महाकवि बनता कोई, सहकर कष्ट वियोग |
सहकर कष्ट वियोग, गलतियाँ करते जाएँ |
किन्तु रहे यह ध्यान, उन्हें फिर न दोहराएँ |
कह रविकर सन्देश, यही है श्रेष्ठ-जनों का |
पंडित "शास्त्री" संत, आदि सब महामनों का ||
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बिकता है हर आदमी, भिन्न-भिन्न है दाम |
सच्चा मोल चुकाय वो, पड़ता जिसको काम ||
पड़ता जिसको काम , खरीदे देकर पैसा |
करता न सम्मान, करे बदनाम हमेशा |
पर रविकर यदि प्यार, ख़रीदे तुम्हें तोल के -
बिक जाना तुम यार, वहाँ पर बिना मोल के ||
आजतक आपके ब्लॉग तक न पहुँच पायी थी....अफ़सोस है...
ReplyDeleteअब नियमित रहूंगी...
बहुत-बहुत स्वागत महोदया आपका |
ReplyDeleteकभी इधर भी चक्कर लगा लेना |
आभार ||
http://neemnimbouri.blogspot.com/
http://dineshkidillagi.blogspot.com/
बहुत बढिया .. आपके इस पोस्ट की चर्चा आज की ब्लॉग4वार्ता में की गयी है !!
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार |
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