चाहे प्रगति, लोक-हित, प्रतियोगी कुछ और |
खाने - पीने - मौज के, गए पुराने दौर ||
प्रतियोगी भी स्वस्थ हों, मन में रखें न द्वेष |
गला काट प्रतियोगिता, टालें कुटिल कलेश ||
उत्पादों की श्रेष्ठता , हो कोशिश भरपूर |
टांग खींचने से परन्तु , खुद को रक्खे दूर ||
होता धंधा खेल में , धंधे में हो खेल |
ये गन्दी प्रतियोगिता, प्रगति रही धकेल ||
उसकी शर्ट सफ़ेद खुब, अपनी पीली देख |
निज रेखा बढ़ न सकी, काटें लम्बी रेख ||
जरा इन्हें भी देख लीजिये ---
चाहे प्रगति, लोक-हित, प्रतियोगी कुछ और |
ReplyDeleteखाने - पीने - मौज के, गए पुराने दौर ||
सही
aabhaar|
ReplyDeleteउत्पादों की श्रेष्ठता , हो कोशिश भरपूर |
ReplyDeleteटांग खींचने से परन्तु , खुद को रक्खे दूर ||
बहुत अच्छा लिखा है , बधाई !
आपकी कुछ और पुरानी पोस्ट्स भी अभी पढ़ी है … ।
निरंतर सृजनरत रहने की आपकी प्रवृत्ति को नमन !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
बहुत बेहतरीन!!!!
ReplyDeleteजब विद्वानों की अनुकूल टिप्पणियां मिलती हैं तो दिल बाग-बाग हो जाता है |
ReplyDeleteप्रतिकूल टिप्पणियों एवं आलोचना के लिए भी मन तैयार रहता है ताकि स्वयम को बद-दिमागी और अंट-शंट से बचाए रखा जा सके |
बहुत-बहुत आभार |
प्रतियोगी भी स्वस्थ हों, मन में रखें न द्वेष |
ReplyDeleteगला काट प्रतियोगिता, टालें कुटिल कलेश ||
उत्पादों की श्रेष्ठता , हो कोशिश भरपूर |
टांग खींचने से परन्तु , खुद को रक्खे दूर ||
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! बढ़िया लिखा है आपने! बहुत अच्छा लगा! बधाई!
बहुत-बहुत आभार |
ReplyDeleteसार्थक दोहे...
ReplyDeleteबेहतरीन दोहे ।
ReplyDeleteउसकी शर्ट सफ़ेद खुब, अपनी पीली देख |
ReplyDeleteनिज रेखा बढ़ न सकी, काटें लम्बी रेख ||
बहुत सारगर्भित और सटीक दोहे..बहुत सुन्दर
बहुत-बहुत स्वागत महोदय आपका |
ReplyDeleteबहुत-बहुत स्वागत महोदया आपका |
उसकी शर्ट सफ़ेद खुब, अपनी पीली देख |
ReplyDeleteनिज रेखा बढ़ न सकी, काटें लम्बी रेख ||
Bahut hee sateek aur sachche dohe. Anand aa gaya.
बहुत-बहुत स्वागत महोदया आपका |
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