24 June, 2011

खून के वे आखिरी कतरे चुए

ऐसे  दीपक  को  बुझाये  क्या  हवा,
तूफां  में  भी  जो सदा  जलता रहा |

दिल  के  झरोखे में, हथेली ने ढका,
मुश्किलों  का  दौर यूं  टलता  रहा |

तेल   की   बूंदे  इसे  मिलती  रही--
अस्थियां-चमड़ी-वसा गलता रहा |

अब अगर ईंधन चुका  तो क्या करे,
कब से रविकर तन-बदन तलता रहा|

खून  के   वे  आखिरी  कतरे   चुए -
जिनकी बदौलत दीप यह पलता रहा ||

12 जुलाई 2011 को 25 वाँ मुर्गा कटेगा

4 comments:

  1. दिलदार दीपक

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  2. दिलदार दीपक |
    दिलदार-देवता ||
    पारसनाथ-बैद्यनाथ-धाम का
    स्वीकारें न्योता ||

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  3. ऐसे दीपक को बुझाये क्या हवा,
    तूफां में भी जो सदा जलता रहा |
    सही कहा रवि जी
    ''वो शमा क्या बुझेगी,जिसे रोशन खुदा करे.''

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  4. बड़ी मुश्किलों से
    इकट्ठा कर सका था
    दो नाम |
    दिनेश से आया रवि
    और "कर" है अब "अनाम" |


    कृपया साथ रखें--
    करें न अलग-अलग |
    दिल का दर्द जाता है जग ||

    बहुत-बहुत आभार शालिनी जी ||

    दिनेश चन्द्र गुप्ता ,"रविकर"

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