ऐसे दीपक को बुझाये क्या हवा,
तूफां में भी जो सदा जलता रहा |
दिल के झरोखे में, हथेली ने ढका,
मुश्किलों का दौर यूं टलता रहा |
तेल की बूंदे इसे मिलती रही--
अस्थियां-चमड़ी-वसा गलता रहा |
अब अगर ईंधन चुका तो क्या करे,
कब से रविकर तन-बदन तलता रहा|
खून के वे आखिरी कतरे चुए -
दिलदार दीपक
ReplyDeleteदिलदार दीपक |
ReplyDeleteदिलदार-देवता ||
पारसनाथ-बैद्यनाथ-धाम का
स्वीकारें न्योता ||
ऐसे दीपक को बुझाये क्या हवा,
ReplyDeleteतूफां में भी जो सदा जलता रहा |
सही कहा रवि जी
''वो शमा क्या बुझेगी,जिसे रोशन खुदा करे.''
बड़ी मुश्किलों से
ReplyDeleteइकट्ठा कर सका था
दो नाम |
दिनेश से आया रवि
और "कर" है अब "अनाम" |
कृपया साथ रखें--
करें न अलग-अलग |
दिल का दर्द जाता है जग ||
बहुत-बहुत आभार शालिनी जी ||
दिनेश चन्द्र गुप्ता ,"रविकर"