संसाधन-खोर
संसाधन का कर रहे, गर बेजा उपयोग |
महंगाई पर चुप रहें , वे दुष्कर्मी लोग ||
हरामखोर
भाग्य भरोसे छोड़ते, सारे बिगड़े-काम |
खाते-पीते मौज से, जिनके लगी हराम ||
दारु-खोर
बोतल में पानी लिए, भटकें चारों ओर |
गला सूखता प्यास से, ढूंढें दारु-खोर ||
आदमखोर
अन्ध-मोड़ पर छोड के, भागा पापी घोर |
थे पैरों के दो निशाँ, पूरा आदमखोर ||
रिश्वत-खोर
नीचे से ही खाय यू , खावै मां उस्ताद |
सड़ी गली विष्टा करे, दायें-बाएं पाद ||
पूरे पाँच नस्ल के दोहे है
ReplyDeleteसंसाधन का कर रहे, गर बेजा उपयोग |
ReplyDeleteमहंगाई पर चुप रहें , वे दुष्कर्मी लोग ||
बहुत सार्थक प्रस्तुति
बहुत सटीक लिखा है रविकर जी .महगाई जिस तरह बढती जा रही उस पर चुप्पी साधना इन लोगों को शोभा नहीं देता पर ....पर ...पर ..ये बात समाप्त हो जाती है .बढ़िया व्यंग्य .आभार
ReplyDeleteरविकर जी मैं हिंदी साहित्य की विद्यार्थी हूँ .मेरे शोध का विषय ''हिंदी की महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में स्त्री विमर्श ''रहा है .मैं अपनी थीसिस जमा कर चुकी हूँ .अब फ़ाइनल वायवा शेष है .
ReplyDeleteवाह रविकर जी, खोरों की बात। अच्छा है।
ReplyDeleteलेकिन फिर बोलूंगा कि खोर में जैसे हरामखोर में हाइफन जिसे योजक चिन्ह कहते हैं, नहीं लगना चाहिए, जहाँ तक मैं समझता हूँ। अब यह मत बोलिएगा कि मेरे आलेखों में भी यहाँ गलती है, वहाँ गलती है। वैसे बताइएगा तो ठीक कर दूंगा। वैसे भी आदमखोर और हरामखोर को छोड़कर अन्य खोर बनाए गए हैं।
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आये बड़ा अच्छा लगा.सही अर्थों में पहली बार संसाधन खोर ,हरामखोर .......खोरों की परिभाषा एक साथ मिल गई.
ReplyDelete@ इसके बाद लिखने की फुरसत मिलती भी है या नहीं ||
ReplyDeleteसच में कई दिन क्या महीने हो गए |
अरे भाई जरा घूम ही लो मन बहल जायेगा --
आपका आप जाने
हमारा मन ||.........
aaj-kal aap koi 7-10 blog pe dikh jate hain......kavimana hai......kavya me hi tip dete hain..........'avinash vachaspati' ji ka blog jaroor padhen......
bakiya......vyast rahiye......mast rahiye.....
sadar.
व्यवस्था पर चोट करते अच्छे दोहे
ReplyDeleteसंसाधन का कर रहे, गर बेजा उपयोग |
ReplyDeleteमहंगाई पर चुप रहें , वे दुष्कर्मी लोग ||
बहुत अच्छे दोहे... सार्थक प्रस्तुति